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________________ तृतीये आख्याताप्पाये बितीयः प्रत्ययपादः २८५ ११.अस्मन्मते प्रायेण व्यभिचारदर्शनात् “कभिप्राये क्रियाफले" (अ०१।३।७२) इति पाणिनिसूत्रं न सम्मतमिति । तथा च कुलचन्द्रः विशेषः पाणिनेरिष्टः सामान्यं शर्ववर्मणः। सामान्यमनुगृह्णन्ति तत्राचार्यपरम्परा ।। इत्यादि (क० च०) ।।४९५। [रूपसिद्धि] १. कारयति, कारयते | कृ + इन् +अन् +ति, ते । 'कुर्वन्तं प्रयुङ्क्ते' इस अर्थ में 'डु कृञ् करणे' (७।७) धातु से “धातोश्च हेतौ" (३।२।१०) सूत्र द्वारा इन् प्रत्यय, “अस्योपधाया दीर्घो वृद्धि मिनामिनिचट्सु" (३।६।५) से ऋ को वृद्धि, "ते धातवः" (३।२।१६) से 'कारि' की धातुसंज्ञा, प्रकृत सूत्र से उभयपदविधान के अन्तर्गत परस्मैपदसंज्ञक वर्तमानार्थक प्रथमपुरुष - एकवचन 'ति' प्रत्यय, "अन् विकरणः कर्तरि"(३।२।३२)से अन् विकरण,“नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणः" (३।५।१) से कारि-घटित इकार को गुण तथा “ए अय्"(१।२।१२) से अयादेश । आत्मनेपदसंज्ञक ते-प्रत्यय आने पर 'कारयते' प्रयोग । २. सुनोति, सुनुते । सु+नु+ति, ते । 'षुञ् अभिषवे' (४।१) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा उभयपदविधान के अन्तर्गत परस्मैपदसंज्ञक ति-प्रत्यय, "नुः ष्वादेः" (३।२।३४) द्वारा नु-विकरण तथा "नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणः" (३।५।१) से नु- गत उकार को गुणादेश । आत्मनेपदसंज्ञक त -प्रत्यय में 'सुनुते' प्रयोग । ३. यजति, यजते । यज + अन् + ति, ते । 'यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (१।६०८) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा उभयपद का विधान । परस्मैपदरूप - यजति, आत्मनेपदरूप - यजते । ४. पचति, पचते | पच + अन् +ति, ते । 'डु पचष् पाके' (१।६०३) धातु से प्रकृतसूत्र द्वारा उभयपद का विधान । परस्मैपदरूप तिप्रत्ययान्त-पचति । आत्मनेपदरूप ते प्रत्ययान्त - पचते ।।४९५। ४९६. पूर्ववत् सनन्तात् [३।२।४६] [सूत्रार्थ] सन् प्रत्यय होने से पूर्व जो धातु जिस पद में होती है, सन् प्रत्यय होने के बाद भी उस धातु से वही पद उपपन्न होगा ।।४९६।
SR No.023089
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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