SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१२ कातन्त्रम्याकरणम् करना पड़ता है । व्याख्याकारों ने जो पक्षान्तर दिखाया है - कु आदेश तथा अत् प्रत्यय का, उसके समाधानार्थ कहा गया है कि कु आदेश होने पर उ का गुण (ओ) करना पड़ता । फलतः इष्टरूप की सिद्धि क्व आदेश से करनी पड़ती है । [रुपसिद्धि] १. क्व । कस्मिन् इति । किम् + ङि (क्व) +अत् । प्रकृत सूत्र द्वारा अत् प्रत्यय, किम् शब्द को ‘क्व’ आदेश, वकारोत्तरवर्ती अ के उच्चारणार्थ होने से उसका अप्रयोग, 'क्व' शब्द की लिङ्ग्ङ्गसंज्ञा, सि-प्रत्यय, 'क्व' शब्द के अव्ययसंज्ञक होने से सिप्रत्यय का "अव्ययाच्च” (२/४/४) सूत्र द्वारा लुक् || ३९८ । ३९९. तहोः कुः [२/६/३३] [सूत्रार्थ] तकार और हकार के परवर्ती होने पर 'किम्' शब्द को 'कु' आदेश होता है || ३९९ | [दु० बृ०] तकारहकारयोः परयोः किमः कुर्भवति । कुतः, कुह ॥ ३९९। [दु० टी०] तहोः । किम्-शब्दो हेः प्राक् पठ्यते । रूढिशब्दा हि तद्धिताः इति भवद्दीर्घायुरायुष्मद्देवानां प्रियैर्योगे शेषेभ्योऽपि तसादयः । सभवान्, ततोभवान्, तत्रभवान् । तंभवन्तम्, ततोभवन्तम्, तत्रभवन्तम् । तेनभवता, ततोभवता, तत्रभवता । तस्मैभवते, ततोभवते, तत्रभवते । तस्यभवतः, ततोभवतः, तत्रभवतः । एवं सदीर्घायुः, सआयुष्मान् सदेवानांप्रिय इति सर्वत्र योज्यम् । एवं कोभवान् कुतोभवान्, क्वो भवान् इत्यादि । एवम् अयम्भवान्, इतोभवान्, इहभवान् इत्यादि ।। ३९९ । [समीक्षा] तकारादि तथा हकारादि प्रत्ययों के परवर्ती होने पर किम् को कु आदेश करके 'कुतः, कुत्र, कुह' शब्दों की सिद्धि दोनों ही व्याकरणों में की गई है । पाणिनि का 'कु' आदेशविधायक सूत्र है - "कु तिहो : " ( अ० ७/२/१०४) अतः उभयत्र साम्य है।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy