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________________ विषयानुक्रमणी २७ २०. द्वन्द्वसमास पृ० सं० ३५१ - ५४ [जिस समास में दो अथवा बहुत पदों का समुच्चय होता है उसकी द्वन्द्व संज्ञा, समुच्चय के दो भेद-इतरेतरयोग तथा समाहार, समुच्चय से भिन्न अन्वाचय, इतरेतरयोग की अवयवप्रधानता, समाहार की संहतिप्रधानता] । २१. पूर्वनिपात विधि पृ० सं०३५४ -५८ [द्वन्द्वसमासघटित पदों में अल्पस्वर वाले पद का पूर्वनिपात, पुरुषापराध से विपरीत प्रयोग की संभावना, व्याख्याकारों द्वारा कुछ वार्तिक वचनों का उपस्थापन, अर्चित पद का पूर्वनिपात, महाभाष्य में वार्त्तिक वचन की उपलब्धि] । २२. अव्ययीभावसमास पृ० सं० ३५८-६५ [पूर्वपदार्थविशेष्य की अव्ययीभाव संज्ञा, वृत्तिकार दुर्गसिंह द्वारा प्रस्तुत विभक्ति-समीप आदि अर्थ, दो प्रकार की ऋद्धि-समृद्धि, आत्मभावसम्पत्ति, अनेक प्रकार का अभाव, पञ्जिका नामक द्यूत, विद्याकृत-जन्मकृत वंश, वाक्य से संज्ञा का अभाव, शिष्टप्रयोग के अनुसार अन्य उदाहरणों का भी परिज्ञान] | २३. नपुंसकलिङ्ग-पुंवद्भाव आदि पृ० सं० ३६५ - ४१३ [अव्ययीभावसमासविशिष्ट पद-समाहारद्वन्द्व-समाहारद्विगु-भाषितपुंस्क का पुंवद्भाव, महन्त् शब्द के अन्त्यावयव तकार के स्थान में आकारादेश, तत्पुरुष समास में नञ्घटित नकार का लोप, नञ्तत्पुरुष समास, स्वरवर्ण के परवर्ती होने पर 'न' तथा स्वर वर्ण का विपर्यय-तत्पुरुष समास में कु को कत् तथा का आदेशस्त्रीलिङ्गकृत ईकार तथा आकार को ह्रस्वादेश, ह्रस्व को दीर्घ आदेश, विसर्ग के स्थान में सकारादेश, ह्रस्व को दीर्घ आदेश, विसर्ग के स्थान में सकारादेश, संज्ञारूप तद्धितों का लोकोपचार से ही निश्चय, दर्श-पौर्णमास शब्दों का अर्थ, 'क्षुद्र' शब्द की अनेक व्याख्याएँ, स्मृति का प्रामाण्य, 'अनुवाद' शब्द का अर्थ, कुछ शब्दों की अभिधानव्यवस्था का भाष्यकार द्वारा समादर, लोक में उपमानोपमेयभाव की प्रसिद्धि, अवयव का समुदाय में अन्तर्भाव, जाति की व्याख्या, प्रतिपत्तिगौरव, 'अक्षर' शब्द से वर्ण तथा स्वर का ग्रहण, रूढ शब्दों की कथंचित् व्युत्पत्ति, सूत्र में 'अर्थ' शब्द का ग्रहण सुखार्थ, नञ् द्वारा निर्दिष्ट की अनित्यता, पञ्चविध निरुक्त] |
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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