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________________ कातन्त्रव्याकरणम् गन्यमान होने पर कृ - धातु के कर्म में षष्ठी विभक्ति, हिंसार्थक धातुओं के कर्म में षष्ठी विभक्ति, रुजार्थ-हिंसार्थ की अभिन्नता, प्राणियों को किसी भी प्रकार की पीडा पहुँचाना हिंसा, कृत्प्रत्ययान्त शब्दों के प्रयोग में कर्ता-कर्म कारकों में षष्ठी विभक्ति, वाक्यव्यवहार का बुद्ध्यवस्था पर आधारित होना, निष्ठादि कृत्-प्रत्ययान्त शब्दों के प्रयोग में कर्ता-कर्म में षष्ठी विभक्ति का निषेध ] | १२. णकार - अनुस्वार - वर्गीय अन्त्य वर्ण चवर्ग - टवर्ग षकारणकार आदेश पृ० सं० २१० - ३२ [ ' षण्णाम्' में डकार को नकारादेश, 'पुंसः - शान्तिः' में मकार नकार को अनुस्वारादेश, पाणिनीय झल् प्रत्याहार के लिए धुट् शब्द का व्यवहार, 'शङ्किता - नन्दिता' इत्यादि में अनुस्वार के स्थान में वर्गीय अन्त्य वणदिश, 'लज्जते यज्ञःषण्णाम्' इत्यादि में तवर्ग के स्थान में चवर्ग - टवर्ग आदेश, 'सर्वेषाम् - धनूंषिअग्नीषोमौ' इत्यादि में दन्त्य सकार को मूर्धन्य षकारादेश, उदाहरणों का विस्तार मन्दबुद्धि वालों के सुखपूर्वक अवबोधार्थ, 'हरणम् अर्हेण-दर्पेण- तिसृणाम् बृंहणम्' इत्यादि में नकार को णकारादेश, जिह्वामूलीय - उपध्मानीय के लिए विसर्ग का व्यवहार, दीर्घार्थ वर्णशब्द का पाठ, शिष्टव्यवहार से अन्य उदाहरणों का उपादान ] १३. स्त्रीलिङ्ग में 'आ-ई' प्रत्यय पृ० सं० २३२-४८ २४ - [ अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में आ-प्रत्यय, लोकव्यवहार के अनुसार पुंलिङ्गस्त्रीलिङ्ग नपुंसकलिङ्ग का विधान, लोक शब्द से शास्त्रकारों का ग्रहण, नदादिगणपठितअन्च् – भागान्त-वाभागान्त-उकारान्त-इकारान्त-अन्स्भागान्त-अन्तभागान्त-ऋकारान्तसखि - नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में 'ई' प्रत्यय, नदादिगण का आकृतिगण होना, युक्तिवचनों के आधार पर कातन्त्रकार द्वारा आश्रित लाघव, अभेदोपचार से यवनानी, भेदोपचार से यावनी, 'स्वाङ्ग-वयः' आदि की परिभाषाएँ, गणनिर्देश से उदाहरणों का विस्तार दिखाना सुखपूर्वक बोध के लिए, 'भूमि - युवति' इत्यादि शब्दों सेई प्रत्यय के विना ही स्त्रीत्व का अवबोध ] | १४. अकारलोप तथा हस्वादेश पृ० सं० २४८-५३ [ स्त्रीलिङ्गसम्बन्धी ईकार के परवर्ती होने पर पूर्ववर्ती अकार का लोप, कातन्त्रकार की सूत्ररचना में लाघवकृत उत्कर्ष, 'कार' शब्द से स्वरूपमात्र का
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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