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________________ २२ कातन्त्रव्याकरणम् २९. नकारस्य शकार-षकार- सकारादेशाः २१९-२८ [पदान्तवर्ती नकार के स्थान में अनुस्वारपूर्वक शकार- षकार - सकार आदेश, पाणिनीय प्रक्रिया में गौरव और दुर्बोधता, कातन्त्रीय प्रक्रिया में संक्षेप और सरलता, ‘पुंस्कोकिल’ शब्द की परिभाषा - संबधितः पितृभ्यां य एकः पुरुषशावकः । पुंस्कोकिलः स विज्ञेयः परपुष्टो न कर्हिचित् ॥ आठ शब्दों की रूपसिद्धि] ३०. नकारस्य 'ल्- ञ्- न्च् - ' आदेशाः २२८-३९ [पदान्तवर्ती नकार को लकारादि ४ आदेश, कारहीनपाठ की सार्थकता, पाणिनि का सावर्ण्यज्ञान गौरवाधायक, परिभाषावचनों का स्मरण, हेमकर- कुलचन्द्र आदि आचार्यों के अभिमत, अठारह शब्दों की रूपसिद्धि] ३१. मकारस्यानुस्वारादेशः, अनुस्वारस्य पञ्चमवणदिशश्च २३९-४५ [पदान्तवर्ती मकार को अनुस्वारादेश तथा अनुस्वार को पञ्चम वर्णादिश, पाणिनीय प्रक्रिया की प्रयत्नसाध्यता, पाँच शब्दों की रूपसिद्धि] पञ्चमो विसर्जनीयपादः २४६-३२० ३२. विसर्गस्य श्-धू-स्- जिह्वामूलीय- उपध्मानीयादेशाः २४६-५३ [ चकारादि वर्णों के पर में रहने पर विसर्ग के स्थान में शकारादि ५ आदेश, कातन्त्र-पाणिनीय प्रक्रियाओं का उत्कर्षापकर्ष, दोनों व्याकरणों में जिह्वामूलीयउपध्मानीय का लिपिभेद, विविध अभिमत तथा दश शब्दों की रूपसिद्धि] ३३. विसर्गस्य पररूपादेशः २५३-५५ [शकार के परवर्ती होने पर पूर्ववर्ती विसर्ग को शकार, प्रकार के परवर्ती होने पर षकार तथा सकार के परवर्ती होने पर सकारादेश, पाणिनीय प्रक्रिया में गौरव, तीन शब्दों की रूपसिद्धि, इस सूत्र में चार प्रश्नों के उत्तर === क्व हरिः शेते ? का च निकृष्य को बहुलार्ध : ? किं रमणीयम् । 1 कांतचे शक सूत्र शेपे, सेवा, वा, पररूपम् ।। ] -
SR No.023086
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1997
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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