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________________ ७५ नर्द्धित्रिकोद्योततिर्यङ्नरकस्थावरद्विकसाधारणातपाष्टकषायनपुंस्त्रीहास्यादिपुंसचलननिद्राद्वयविघ्नावरण क्षयः क्षपके । क्षपकश्रेणि करनार, प्रथम चार अनंतानुबधिकषायनो क्षय करे. पछी मिथ्यात्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय अने समकितमोहनीय ए प्रणनो अनुक्रमे क्षय करे, पछी त्रण आयुष्यनो पछी एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय. थिणद्धित्रिक, उद्योत नाम, तिर्यंच. द्विक, नरकद्विक, स्थावरद्विक, साधारणनाम अने भातपनाम ए सोलनो क्षय करे पछी आठ कषायनो क्षय करे पछी नपुंसकवेद अने ते पछी स्त्रीवेदनो क्षय करे, ते पछी हास्यादिषट्कनो ते पछी पुरुषवेदनो ते पछी संज्वलन चार कषायनो अनुक्रमे, ते पछी बे निद्रानो ते पछी अंतराय ५, ज्ञानावरणीय ५ अने दर्शनावरणीय ४ ए १४ नो क्षय करे. २३७. कार्याभ्यासादिकतवैषम्यं वीर्यविघ्नघातजवीर्यम् । कार्यनी निकटता आदि वडे कयु छे जीवप्रदेशोनुं विषमपणु जेमां एवा वीर्यातरांयना नाशथी थनार योग ते वीर्य छे. २३८. असङ्ख्यलोकसमं प्रदेशेऽपरम्परमपि । ___ एकेक प्रदेशे वीर्यना अविभागो मसंख्यात लोकाकाशना प्रदेश प्रमाण होय छे.
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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