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________________ स्थितिबंधना अध्यवस्थानो अने रसबंधना श्रध्यवस्थानो ए चार अनुक्रमे असंख्यातगुणा छे, तेथी कर्मप्रदेशो अनंतगुणा अने ते करतां रसना छेदो अनंतगुणा छे. हबे श्रेणि, प्रतर अने घननु स्वरूप कहे छे२३४. सप्तरज्ज्वकैकप्रदेशतद्वर्गवर्गाः श्रेणिप्रतरघनाः । घनीकृत सात राज प्रमाण लोकनी लांबी एक प्रदेशनी श्रेणि ते सूची-श्रेणि अने तेनो वर्ग प्रतर अने तेनो वर्ग घन जाणवो. २४२ = ४, ४४४ = १६. हवे उपशमश्रेणि कहे छे२३५. अनदर्शननपुंसकस्त्री वेदहास्यादिषटपुंवेदाननन्तस द्विकैकान्तरितानामुपशमः । उपशमणि करनार प्रथम अन-अनंतानुबंधी चार कषायनो उपशम करे, ते पछी दर्शन-त्रण दर्शनमोहनीयनो, ते पछी नपुंसकवेदनो, ते पछी स्त्रीवेदनो ते पछी हास्यादि. षटकनो, ते पछी अननंत-अप्रत्याख्यानीय अने प्रत्याख्यानीय बब्बे क्रोधादिनो अने संज्वलनकषायनो आंतरे उपशम करे छे. हवे क्षपकश्रेणि कहे छे२३६. अनमिथ्यात्वमिश्रसम्यक्त्वत्र्यायुरेकविकलाक्षस्त्या
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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