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________________ २९ घुचतुष्कसप्तमो-ऽहास्यरतिकुत्साभय-प्रथमो-ऽपुंवेदान्त्य-क्रोधादिचतुर्भागोऽलोभसूक्ष्मान्तादर्शनचतुष्कज्ञानावृत्यन्तरायो-च्चयशस्काः । (त्रिषु सातः) बंधमां ओघे १२० प्रकृति होय छे. ते आ प्रमाणे-शानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, वेदनीय २, मोहनीय २६, आयुष्य ४, नामकर्म ६७, गोत्र २ अने अंतराय ५, ए सर्व मली १२० । मिथ्यात्वगुणस्थानमा जिननाम, आहारक अने आहारक अंगोपांग सिवाय ११७ प्रकृति बंधमां होय । मिथ्यादृष्टिगुणस्थानना अंतमां-नरकत्रिक-नरकगति नरकानुपूर्वी अने नरकायुष्य, जातिचतुष्क-एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चरिंद्रियजाति, स्थावरचतुष्क-स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण, हुंड, आतप, सेवार्त, नपुंसकवेद अने मिथ्यात्व ए सोल प्रकृति व्युच्छेद जाय एटले सास्वादनगुणस्थानमां १०१ प्रकृति बंधाय । सास्वादनना अंतमां-तिर्यंचत्रिक-तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी अने तिर्यंचायुष्य, स्त्यानद्धित्रिक-निद्रानिद्रा, प्रवलाप्रचला अने स्त्यानद्धि, दौर्भाग्यत्रिक-दुर्भग, दुःस्वर अने अनादेय, अनंतचतुष्क-अनंतानुषंधी क्रोध, मान, माया अने लोभ, मध्यसंस्थान चतुष्क-न्यग्रोध, सादी, वामन अने कुब्ज, मध्यस हननचतुष्क-ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच अने कीलिका, नीचगोत्र, उद्योत, अशुभगम-अशुभविहायोगति, स्त्रीवेद, आयुर्द्विक-मनुष्यायुष्य अने देशायुष्य ए सत्तावीस प्रकृतिओनो अंत थवाथी ए लिवाय मिश्रगुणस्थानमांचुम्मोतेर बंधाय । ते चुम्मोतेर तीर्थ करनाम अने आयुर्द्विकमनुष्यायुष्य अने देवायुष्य (७४) सहित ७७ अविरतसम्य
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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