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________________ २२ अचक्षुदर्शन पम चार उपयोग. एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, इंद्रिय अने स्थावरमां ते चार चक्षुदर्शन रहित त्रण उपयोग. त्रण अज्ञान - मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान, अभव्य, मिथ्यात्व अने सास्वादनमां त्रण अज्ञान अने बे दर्शन-चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शन एम पांच उपयोग केवलद्विक ज्ञान केवलदर्शन एम बे उपयोग. क्षायिकसम्यक्त्व अने यथाख्यातचारित्रमां अज्ञानत्रिक-मति अज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान विना नव उपयोग. देशविरतमां त्रण दर्शन-चक्षु अचक्षु अने अवधिदर्शन अने त्रण ज्ञान - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान एम छ उपयोग. मिश्रदृष्टिमां तेज त्रण दर्शन अने त्रण ज्ञान अज्ञानसहित होय. अनाहारमां चक्षुदर्शन अने मनःपर्यायज्ञान विना दस उपयोग. ज्ञान चतुष्क - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान, अने मनःपर्यायज्ञान, संयमचतुष्क- सामायिक चारित्र, छेोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म संपराय चारित्र, उपशमसमकित वेदक- क्षायोपशमिकसमकित अने अवधिदर्शनने विषे ज्ञानचतुष्क - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्यायज्ञान अने दर्शनत्रिक-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अने अवधिदर्शन एम सात उपयोग होय. हवे मार्गणास्थानोमां लेश्या जणावे छे - ६७. एकाक्षासञ्ज्ञिभूदकवृक्षे नारकविकलाग्निवाते यथाख्यातसूक्ष्म - केवलद्विके शेषे चतुस्त्रिशुक्लषड्लेश्याः । एकेंद्रिय, असंज्ञी पृथ्वीकाय, अष्काय अने वनस्पतिकायमां प्रथम चार लेश्या नारकी, विकलेंद्रिय, अग्निकाय अने
SR No.023037
Book TitleKarmarth Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1973
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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