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________________ क्रिया तथा कारक सकर्मक धातु का कर्तृवाच्य - स ओदनं पचति । कर्मवाच्य - तेनोदनः पच्यते । 31 कर्मकर्तृवाच्य - ओदनः पच्यते ( स्वयमेव ) । " अकर्मक धातु का कर्तृवाच्य -- स तिष्ठति । भाववाच्य - तेन स्थीयते । ५१ "" यह स्पष्ट है कि कर्मवाच्य तथा भाववाच्य की एकरूपता रहती है तथा इनके क्रियापदों में यक्, चिण् आदि प्रत्यय होते हैं । किन्तु एक बड़ा अन्तर यह है कि कर्मवाच्य में लिङ्ग, वचन तथा पुरुष से विशिष्ट कर्म का अभिधान होने से धातु कर्मानुसार प्रत्यय का परिवर्तन या ग्रहण करते हैं, जबकि भाववाच्य में भावमात्र का अभिधान होने से प्रत्यय सदा एकरूप रहते हैं । इसमें प्रत्यय सदा प्रथमपुरुष ( तिङ - मात्र में ), नपुंसकलिङ्ग ( कृत् - मात्र में ) तथा एकवचन ( उभयत्र ) में रहते हैं; जैसे - तेन स्थीयते, स्थितम् । हाँ, काल का प्रभाव इस पर भी अवश्य पड़ता है जिससे भाववाच्य के रूप भी विभिन्न लकारों में हो सकते हैं -- तेन अभावि ( लुङ् ), भूयताम् ( लोट् ), भूयेत ( लिङ् ) इत्यादि । अभूयत (लङ् ), तिङ् प्रत्यय का अर्थ - न्याय तथा व्याकरण के सिद्धान्त पूर्ण क्रिया का रूप देने के लिए धातु में कुछ प्रत्यय लगाये जाते हैं; जैसे – तिङ तथा तव्यत् क्त आदि कृत्' । इनके अतिरिक्त सन् यङ् आदि प्रत्यय लगाकर धातु को पुनः धातु बनाया जाता है । इन्हें प्रत्ययान्त धातु कहते हैं, क्योंकि धातुओं तथा अन्य शब्दों से इन प्रत्ययों के लगाने पर उन्हें धातुसंज्ञा ही होती है २ । मूल धातु तथा प्रत्ययान्त धातु के अर्थों में बहुत अन्तर होता है । जिस प्रकार धातु के अर्थ के विषय में दर्शनों में अनेक मत प्रचलित हैं, उसी प्रकार प्रत्ययों के अर्थों को लेकर भी १. कुछ कृत्-प्रत्ययों का प्रयोग क्रिया के रूप में होता है; यथा - तेन गन्तव्यम्, स गतः, गतवान् । किन्तु अधिकांश कृत्-प्रत्यय विभिन्न कारकों के अर्थ में धातु से लगाये जाते हैं; जैसे – १. कर्ता में ण्वुल्, तृच्, अण्, क, ल्यु, णिनि, अच् आदि सामान्य कृत्-प्रत्यय ( कर्तरि कृत् – ३ | ४ | ६७ ) । कुछ स्थितियों में क्त प्रत्यय भी कर्ता के अर्थ में होता है । २. कर्म में ( और भाव ) लगने वाले कृत्य, क्त खलर्थ प्रत्यय हैं ( ३।४।७० ) । ३. करण में तथा अधिकरण में ल्युट् प्रत्यय का प्रयोग होता है । इसके अतिरिक्त क्तिन्, घञ् इत्यादि के समान यह भाव के अर्थ में ( धात्वर्थमात्र में ) भी होता है । ' कृत्यल्युटो बहुलम्' ( ३|३|११३ ) के अनुसार अन्य कारकों में भी कृत्य तथा त्युट् के प्रयोग होते हैं - स्नानीयं चूर्णम् । दानीयो विप्रः । ४. सम्प्रदान में दाश ( अच् ) तथा गोघ्न ( टक् ) शब्दों का तथा ५ अपादान में भीम ( मक् ) आदि शब्दों ( कृदन्तों ) का निपातन होता है । तुमुन्, क्त्वा आदि प्रत्यय कालिक प्रभृति अर्थों में होते हैं । क्रियार्था, पूर्व २. 'सनाद्यन्ता धातव:' ( पा० सू० ३।१।२२ ) ।
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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