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________________ २२ संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन इस ग्रन्थ का प्रकाशन अभिनव संस्कृत व्याख्या के साथ आडयार ( मद्रास ) से हुआ है। (५) मञ्जूषा-इस ग्रन्थ में नागेश ने सम्पूर्ण व्याकरण-दर्शन का वाक्यपदीय के समान व्यापकता से विचार किया है । इसके तीन संस्करण स्वयं नागेश ने ही किये थे—गुरुमञ्जूषा, लघुमञ्जूषा तथा परमलघुमञ्जूषा । गुरुमञ्जूषा की एक हस्तलिपि काशी के सरस्वती भवन पुस्तकालय में है तथा यह स्वयं नागेश के हाथ की लिखी प्रति बतलायी जाती है । लघुमञ्जूषा की विषयवस्तु लघुमञ्जूषा का पूरा नाम वैयाकरणसिद्धान्तलघुमञ्जूषा है। इसमें निम्नलिखित क्रम से विषयों का विवेचन हुआ है। आरम्भ में नित्य शब्द-रूप स्फोट का सामान्य निर्देश करके शब्द-प्रमाण की आवश्यकता बतलाते हुए शक्ति, लक्षणा तथा व्यञ्जना इन तीनों शब्दवृत्तियों का विशद निरूपण है। इसी प्रसंग में उक्त स्फोट की अभिनव विवेचना भी स्फोटवाद के आधार पर की गयी है। आकांक्षा, योग्यता, आसत्ति तथा तात्पर्य का विचार करके नागेश सभी शब्दों के मूलभूत धातु के अर्थ का अपने मत से परमतों का खण्डन करते हुए उपस्थापन करते हैं । तदनन्तर निपातार्थ के क्रम में इव, नञ् तथा एव का अपेक्षाकृत विस्तृत विचार किया गया है तथा प्रासंगिक होने के कारण मीमांसकों के द्वारा स्वीकृत परिसंख्या का भी निरूपण हुआ है । इसके अनन्तर तिङर्थ-विचार करते हुए मीमांसकों की मान्यताओं का खण्डन कर संख्या तथा काल का संक्षिप्त विचार करके लकारार्थ का विशद विवेचन हुआ है। इस प्रसंग में विशेष रूप से लिङर्थ के विचार में मीमांसकों के विश्लेषण की नागेश की विस्तृत समीक्षा की है। तदनन्तर मुख्य कृत्-प्रत्ययों के अर्थ का विवेचन करके नागेश सुबन्त की दिशा में अभिमुख होते हैं। सर्वप्रथम प्रातिपदिकार्थ का निरूपण करके ये सुबर्थ का विचार करते हैं। यहीं कारक का भी विवेचन है । कारक-विवेचन में लघुमञ्जूषा सुबर्थ को प्रधानता देती है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न कारकों को शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। अध्याय के शीर्षक विभक्तिमूलक हैं, न कि कारकमूलक । इसीलिए प्रत्येक विभक्ति के अन्तर्गत कारक तथा उपपद दोनों विभक्तियों का विचार किया गया है। कारक तथा विभक्ति के सभी उदाहरणों का प्रायः शाब्दबोध देते हुए प्रत्येक शब्द का नैयायिक सूक्ष्मता से अर्थनिरूपण किया गया है । अन्त में संख्यारूप-विभक्त्यर्थ का भी विश्लेषण हुआ है। इस प्रकरण के बाद समास तथा एकशेष वृत्तियों का सूक्ष्म विवेचन करके तद्धितार्थ तथा वीप्सा का निरूपण करते हुए नागेश ने ग्रन्थ का उपसंहार किया है । इस प्रकार व्याकरण-विषयक १. द्रष्टव्य-पं० सभापति उपाध्याय की मञ्जूषा-टीका ( रत्नप्रभा) के प्राक्कथन में पं० गोपीनाथ कविराज द्वारा दी गयी सूचना ।
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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