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________________ कारक-विषयक भारतीय चिन्तन का इतिहास नागेश सच्चे अर्थों में 'सर्वतन्त्रस्वतन्त्र' थे, क्योंकि व्याकरण, साहित्य, धर्मशास्त्र, दर्शन, ज्योतिष इत्यादि अनेक शास्त्रों में इनकी अप्रतिहत गति थी । पतञ्जलि तथा' भर्तहरि के पश्चात् वैयाकरणों में प्रमाण के रूप में इन्हीं का नाम लिया जाता है। सम्भवतः बहुविषयक ज्ञान की दृष्टि से ये भारतीय विद्वानों में अप्रतिम हैं । व्याकरण में नागेश के निम्नलिखित ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं (१) शब्देन्दुशेखर- यह ग्रन्थ सिद्धान्तकौमुदी की व्याख्या है। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं-( क ) बृहच्छब्देन्दुशेखर-इसमें प्रौढमनोरमा के ढंग पर अत्यन्त विस्तारपूर्वक कौमुदी की पंक्तियों की विवेचना की गयी है। इसका एकमात्र संस्करण डॉ० सीताराम शास्त्री के द्वारा सम्पादित होकर तीन खण्डों में वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित हुआ है । ( ख ) लघुशब्देन्दुशेखर- इसमें संक्षिप्त रूप से उपर्युक्त विषयों का विचार प्राप्त हुआ है। पण्डितों के बीच इसका अत्यधिक प्रचार होने से इसकी अनेक टीकाएँ लिखी गयी हैं । ( २ ) परिभाषेन्दुशेखर--महाभाष्य में आयी हुई १३३ परिभाषाओं की इसमें प्रकरण सहित विवेचना है । यद्यपि पाणिनितन्त्र में परिभाषा-विषयक अन्य भी कई ग्रन्थ हैं, किन्तु प्रतिपादन की सम्पन्नता तथा प्रौढि के कारण इसका प्रचार सबसे अधिक है। इसकी अनेक टीकाएँ हैं (प्रायः २५ के ,नाम मिलते हैं )-वैद्यनाथ पायगुण्ड ( बालम्भट्ट ) की गदा, विश्वनाथभट्ट की चन्द्रिका, ब्रह्मानन्द सरस्वती की चित्प्रभा, भैरव मिश्र की भैरवी, राघवेन्द्र की त्रिपथगा इत्यादि। वर्तमान शती में भी इस पर रामकृष्ण शास्त्री ( भूति ), वासुदेव शास्त्री अभ्यंकर, जयदेव मिश्र ( विजया ) तथा वेणीमाधव शुक्ल ( बृहच्छास्त्रार्थकला ) ने टीकाएँ लिखी हैं । (३) महाभाष्यप्रदीपोद्योत-कैयट की प्रदीप-टीका पर नागेश के द्वारा लिखी गयी यह अत्यन्त विस्तृत टीका है। इसमें प्रदीप का आशय तो समझाया ही गया है, कहीं-कहीं मूल महाभाष्य का आशय भी प्रकट किया गया है। महाभाष्य को समझने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी व्याख्या है। दोनों टीकाओं का महाभाष्य के साथ कई स्थानों से प्रकाशन हुआ है। इनमें निर्णयसागर-संस्करण उत्तम है। उद्योत पर वैद्यनाथ की 'छाया' नामक व्याख्या है, किन्तु वह केवल नवाह्निक मात्र पर (प्रथम अध्याय प्रथमपाद-पर्यन्त ) उपलब्ध है। ( ४ ) स्टोफवाद-इसमें नागेश ने तन्त्रशास्त्र के आधार पर स्टोफरूप नित्य शब्द का प्रतिपादन अत्यन्त गम्भीरता से किया है । इसके अन्त में लेखक ने कहा है 'वैयाकरणनागेशः स्फोटायनऋषेर्मतम् । परिष्कृत्योक्तवांस्तेन प्रीयतां जगदीश्वरः ॥ (पृ० १०२) १. बृहच्छब्देन्दुशेखर की भूमिका (पृ० ५९-६० ) में इनके द्वारा विभिन्न विषयों पर लिखे गये ५६ ग्रन्थों के नाम दिये गये हैं।
SR No.023031
Book TitleSanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Surbharti Prakashan
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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