SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि हिद पाउद मरगद.. के लिए यह भाषा श्रुतिमधुर बनाई गयी। हाल के सत्तसई और जयबल्लभ का बज्जालग्गढ़ महाराष्ट्री प्राकृत के सर्वश्रेष्ठ मुक्तक काव्य हैं। इन काव्यों को डा० हरमन याकोबी ने जैन महाराष्ट्री नाम से पुकारा है। महाराष्ट्री और शौरसेनी नाटकों के बीच में कुछ तकार उच्चारण सम्बन्धी भेद देखे जा सकते हैं संस्कृत शौरसेनी महाराष्ट्री जानाति जाणादि जाणइ एति एदि हित हिय प्राकृत पाउअ मरकट मरगअ लता लदा लआ स्थित थिद थिय प्रभृति पहुदि पहुइ शत एतद् एदम् एअम हेमचन्द्र के समय शौरसेनी के बहुत से नियम महाराष्ट्री प्राकृत के लिए लागू होने लगे थे। वररुचि और हेमचन्द्र ने महाराष्ट्री प्राकृत के निम्न लक्षण दिए हैं (क) क, ग, च, ज, त, द, प, य और व का प्रायः लोप हो जाता है (वररुचि 2, 2; हेमचन्द्र 1, 177)। (ख) ख, घ, छ, झ, थ, ध, फ और भ के स्थान में 'ह' हो जाता है (वररुचि 2,25; 1, 187/3) जैसे-मुह-मुख, सहि-सखि, मेह-मेघ, लहुअ-लघुक, रुहिर-रुधिर, बहु-बधु, सहर-शफर, अहिणव-अभिनव, णह-नभस या नख। जहाँ शौरसेनी में थ को सद सअ
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy