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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि सम्भव भी नहीं है। ऊपर वर्णित पिशाच प्रदेश की सीमा के उत्तर तरफ चोटी प्रदेश था। उस देश में वसने वाली जनता की भाषा का नाम चूलिका पैशाची प्राकृत था। पिशाच प्रदेश की भाषा की समता चूलिका पैशाची से बहुत अधिक है किन्तु उच्चारण में खास अन्तर है। __ प्रचीन समय की जिन प्रान्तीय प्राकृतों का भेद दिखाया गया है सम्भवतः उस समय वे भाषायें विस्तृत भूखण्ड में प्रचलित हों और बीच-बीच में प्रान्तीय प्राकृतों के रूप भी प्रचलित रहे हों। आज उनका परिचय न होने के कारण हम उन्हें भूल रहे हों या उस समय जो 4 शक्तिशाली प्रदेश थे उन्हीं में से कुछ प्रधान का उल्लेख करते हुए 4 प्रान्तीय प्राकृत का उल्लेख किया गया हो। आजकल प्राकृत में मुख्यतया उन्हीं का वर्णन पाया जाता है। अलंकार शास्त्रियों ने अपनी-अपनी रचनाओं में 4 प्रमुख प्रान्तीय प्राकृतों का उल्लेख किया है। केवल भरतमुनि ने नाट्य शास्त्र में उक्त 4 प्रमुख प्रान्तीय प्राकृतों का उल्लेख किया है और बीज रूप में उन प्रान्तीय प्राकृतों का भी उल्लेख किया है। नाटकों में जिन प्राकृतों का वर्णन किया गया है उनमें मुख्य रूप से शौरसेनी का ही वर्णन है। जैन दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में भी शौरसेनी प्राकृत का वर्णन है। बौद्ध धर्म के मूल पिटक ग्रन्थों में, उसकी अट्ठकथा नाम की टीका में, अनेक जातक कथाओं में वर्णित भाषा मागधी ही है। पैशाची भाषा में कोई विशेष साहित्य उपलब्ध नहीं होता। कहा जाता है कि इस भाषा में गुणाढ्य नामक पण्डित ने बृहत्कथा नामक काव्य लिखा था जो कि आजकल अप्राप्य है। हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण (8/4/326) में पैशाची भाषा का स्वरूप बतलाया है। जैनाचार्य रचित केटलांक स्त्रोत में संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची और चूलिका पैशाची छ भाषाओं का उल्लेख किया है। इस प्रकार व्यापक प्राकृत का शौरसेनी से जो भेद बतलाया गया है उसी को नीचे तालिका देकर भेद स्पष्ट करते हैं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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