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________________ प्राकृत समान ध्वनि वाले हो जाते हैं-मअ मद-मत-मृग, मृत । अन्य भाषाओं में इस रूपता की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। शौरसेनी या उसका परिनिष्ठित परिष्कृत रूप महाराष्ट्री किसी प्रदेश या व्यावहारिक भाषा की दृष्टि से हमारे सामने उपस्थित नहीं होती। केवल उसका साहित्यिक स्वरूप ही दृष्टिगत होता है। इस माने में यह संस्कृत का अनुसरण करती है। उत्तर काल की प्राकृत मुख्यतया साहित्यिक रूप में ही उपस्थित होती है। अगर व्यावहारिक प्राकृत उपलब्ध होती तो इस विशाल भारत में अनेक प्रकार की प्राकृतें पाई जातीं। पं बेचेरदास जी का कहना है कि जिस प्रकार आज प्रान्तों का विभाजन है उस प्रकार उस समय भले ही ऐसे प्रांत नहीं हों किन्तु उस समय भी भाषा के अनुसार प्रान्त की रूपरेखा जरूर रही होगी। प्राकृत व्याकरणों में एवं साहित्य शास्त्र के ग्रन्थों में वर्णित प्राकृत भाषा की बोलियों के आधार पर यह निर्णय किया जा सकता है। ___ मथुरा के आस-पास के प्रदेश का नाम शूरसेन था। शूरसेन प्रदेश में प्रचलित भाषा को शौरसेनी कहा गया। राजगृह के अड़ोस-पड़ोस के प्रदेश को मगध कहा जाता था और वहाँ की प्रचलित भाषा को मागधी कहा गया तथा जिस मागधी प्राकृत में बुद्ध भगवान ने उपदेश दिया है उसका नाम पालि है। पालि शब्द बुद्ध भगवान के उपदेश का सूचक है। वस्तुतः पालि किसी भाषा का सूचक नहीं है। प्रसिद्ध अशोक की धर्मलिपि और महाराज खारवेल के शिलालेख में प्राप्त भाषा मागधी ही है। पेशावर के आसपास के प्रदेश का नाम पिशाच देश था और वहाँ की प्रचलित जनता की भाषा का नाम पैशाची प्राकृत था। गुजरात प्रदेश के वाग्भट ने वाग्भटालंकार में एक और भूतभाषा के नाम का उल्लेख किया है। वह नेपाल के समीप के प्रदेश का नाम भोटिया या भोतिया था। उस प्रदेश की भाषा का नाम भूतभाषा था। भूतभाषा का उच्चारण पैशाची से मिलता जुलता है। जिन लोगों ने भूत शब्द का अर्थ भूत, पिशाच आदि लिया है-वह अनुचित है। यह
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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