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________________ (vi) के महान् विद्वान् थे। उन्होंने अपने काल तक प्राप्त विविध स्रोत सामग्री पाणिनि की अष्टाध्यायी और वररूचि के प्राकृत प्रकाश आदि के आधार पर अपने विशद ग्रन्थ की रचना की। अपने प्राकृत व्याकरण में उन्होंने प्राकृत के अन्य भेदों महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची की चर्चा करने के पश्चात् अन्त में अपभ्रंश का निरूपण किया है। इसके . अतिरिक्त अपभ्रंश में प्रयुक्त देशी शब्दों के परिचयार्थ देशीनाममाला की भी रचना की है जो कि अत्यन्त उपादेय है। .. अपभ्रंश को अपशब्द भी कहते हैं-अपशब्द का अर्थ है-जो शब्द संस्कृत व्याकरण से असिद्ध है, जिन शब्दों के ऊपर संस्कृत व्याकरण के विधि विधान का कोई प्रभाव परिलक्षित न हो उन्हें अपभ्रंश अथवा अपशब्द कहते हैं; जैसे-गौः शब्द है । इस शब्द के गावी, गोपी, गोपोतलिका आदि जितने भी रूपान्तर हैं, वे सब अपभ्रंश माने जाते हैं। यही परम्परा अन्य अपभ्रंश शब्दों के सम्बन्ध में भी जाननी चाहिए। पतञ्जलि आदि संस्कृत-वैयाकरणों के अनुसार संस्कृत से भिन्न सभी प्राकृत भाषायें अपभ्रंश के अन्तर्गत ही स्वीकार की गयी हैं किन्तु प्राकृत वैयाकरणों के मतानुसार अपभ्रंश-भाषा प्राकृत-भाषा का ही एक अवान्तर भेद है। प्राकृत चन्द्रिका के अनुसार अपभ्रंश-भाषा के 27 प्रकार माने गये हैं। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक डा० परममित्र शास्त्री ने हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि का निर्धारण करते हुये अपभ्रंश भाषा का भाषावैज्ञानिक दृष्टि से सूक्ष्म एवं समुचित विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी इस कृति में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि अपभ्रंश भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उद्गम स्रोत है। यह लगभग 5, 6 सौ वर्षों तक जनता की भाषा रही सम्भवतया 500 ई० से लेकर 1000 ई० तक अविकल रूप से यह जनभाषा रही। यह काल भारत का संक्रान्ति काल है। अपभ्रंश के विकास में अनेक उतार चढ़ाव आये, इसको सांस्कृतिक महत्त्व मिला। यद्यपि यह मुख्यतया निम्न वर्गों एवं मध्यम वर्गों की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम रही है। बौद्ध सम्प्रदाय के सिद्धों ने, जैनियों ने तथा शैवों ने भी इसे अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया । आन और शान पर मरने वाले राजपूतों को तो यह ललकारती ही थी, इतना ही नहीं प्रेमाभिव्यक्ति भी इस भाषा में प्रचुर मात्रा में हुई। 1000ई० के पश्चात् यह परिनिष्ठित रूप में परिणित होकर परिष्कृत एवं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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