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________________ प्राकृत ह में परिवर्तन भी द्रष्टव्य है-प्रश्न-पण्ह (Metathesis), अश्मना-अम्हना, कृष्ण-कण्ह, सुस्नात-सुण्हात आदि। व्यंजन परिवर्तन के बहत से उदाहरण पाए जाते हैं-शाकल-सागल, माकन्दिक-मागन्दिय, स्रुच-सुजा, प्रतिकृत्य-पटिकिच्च एवं पटिगिच्च, उताहो-उदाहो, पृष्ट-पिट्ठ, रुत-रुद, प्रव्यथते-पवेधते, कपि-कवि (कपि भी), कपित्थ-कवित्थ एवं कपित्थ (संस्कृत का कपित्थ शब्द मध्य आर्य भाषा का रूप है), पूप-पूब-पूब, स्फटिक-फडिक-फठिक, लाट-लाड-लाठ आदि। पुरोगामी समीकरण (ProgressiveAssimilation) (1) स्पर्श+स्पर्श में यथा-षट्क (छै का समुदाय)-छक्क, मुद्ग-मुग्ग, सप्त-सत्त, शब्द-सद्द आदि । (2) ऊष्ण+स्पर्श-यथा-आश्चर्य-अच्छेर, निष्क-निक्ख, नेक्ख आदि। (3) अन्तस्थ+स्पर्श-कर्क-कक्क, किल्विष-किब्बिस। (4) नासिक्य+नासिक्य में-निम्न-निन्न, उल्मूलयति-उम्मूलेति। पश्चगामी समीकरण (RegressiveAssimilation) के भी बहुत से उदाहरण पाए जाते हैं-लग्न-लग्ग, उंद्विग्न-उबिग्ग, स्वप्न-सोप्प आदि। इस तरह हम देखते हैं कि पालि में संस्कृत भाषा के व्याकरणिक नियमों की कड़ाई में ढिलाई हो जाती है। संस्कृत के संज्ञा एवं क्रिया रूपों में भी काफी ढिलाई हो चली ।।4 संस्कृत के नपुंसक लिंग के रूपों के साथ इ या उ अन्त वाले संज्ञा रूपों की न् विभक्ति की नकल पर पुल्लिग रूपों में भी मच्चुनो (मृत्योः के लिए) जैसे प्रयोग किए गए। सम्प्रदान और सम्बन्ध कारक के रूप भी अकारान्त प्रातिपदिकों की तरह बनाए गए जैसे-अग्गिस्स, वाउस्स आदि। उसी प्रकार अग्गिनो, भिक्खुनो रूप नपुंसक लिंग प्रातिपदिकों के मिथ्या सादृश्य के आधार पर बने। हम देखते हैं कि पालि का सम्बन्ध परिनिष्ठित संस्कृत की अपेक्षा वैदिक संस्कृत से कहीं अधिक है। उदाहरण के लिए इदम् का एक वचन पल्लिग रूप इमस्सं, फल का प्रथमा बहुवचन फला; अस्थि और मधु के कर्ता और कर्म के बहुवचन के 'अट्ठी' और 'मधू' रूप।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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