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________________ वाक्य-रचना 437 वर्तमान कृदन्त का षष्ठी विभक्ति में प्रयोग 'तरफ' के अर्थ में होता है। (1) कुञ्जरू अन्नहँ तरु-अरहँ कोड्डे ण घल्लइ हत्थु (हेम० 8/4/422,9)। . (2) सिरु ल्हसिउं खन्धस्सु (हेम० 8/4/445,3)। (3) सत्थावत्थहँ आलवणु साहु विलो करेइ (हेम० 8/4/ 422,16) हेत्वर्थ कृदन्त का ण प्रत्यय षष्ठी विभक्ति में प्रयुक्त होता अक्ख णहं (हेम० 8/4/350,1) भुञ्जणहँ (हेम० 8/4/441,1) आदि । इस तरह अपभ्रंश के वाक्य गठन की प्रक्रिया पुरानी संस्कृत से दूर हटकर बहुत कुछ माने में हिन्दी के बहुत समीप है। 2. संदर्भ 1. चतुर्थ्याः षष्ठी (प्रा० व्या० 3/131); क्वचिद् द्वितीयादेः (प्रा० व्या० 3/134)-अत्र द्वितीयायाः षष्ठी ..... अत्र तृतीयायाः ...अत्र पञ्चम्याः ...... अत्र सप्तम्याः । द्वितीया तृतीययोः सप्तमी (प्रा० व्या० 3/135)। 3. पचम्यास्तृतीया च (प्रा० व्या० 3/136) सप्तम्या द्वितीया (प्रा० व्या० 3/137) ___ईअ-इज्जौ क्यस्य'-चिजि प्रभृतीनां भावकर्मविधिं वक्ष्यामः । येषां तु न वक्ष्यते-तेषां संस्कृतादि देशात्प्राप्तस्य क्यस्य स्थाने ईअ इज्ज इत्येतावादेशौ भवतः। हसीअइ, हसिज्जइ, हसीअन्तो, हसिज्जन्तो, हसीअमाणो, हसिज्जमाणो। पठीअइ, पढ़िज्जइ, होईअइ, होइज्जइ, बहुलाधिकारात क्वचित् क्योपि विकल्पेन भवति। मए नवेज्ज, मए नविज्जेज्ज, तेण लहेज्ज, तेण लहिज्जेज्ज, तेण अच्छेज्ज, तेण अच्छिज्जेज्ज, तेण अच्छीअई (प्रा० व्या० 3/160)।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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