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________________ 434 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि 1. विट्टीए मई भणिय तुहुं-मैंने तुमसे कहा-कर्मणि प्रयोग। 2. मा कुरु वंकी दिट्ठि-वक्र दृष्टि मत करो-कर्तरि प्रयोग। पहले हम बता चुके हैं कि अपभ्रंश में भाववाच्य एवं कर्मवाच्य का प्रयोग वर्तमान काल में 'इज्ज' लगाकर होता था। यह इज्ज प्रत्यय विध्यर्थक भी होता था __ जाइज्जइ तहिं देसडइ (हेम० 8/4/419)-उस देश को जाइए (जाया जाय) + आज्ञार्थे भविष्य । 'ज्ज' प्रत्यय कर्मणि वर्तमान में भी प्रयुक्त होता था। छिज्जइ खग्गेण-खग्गु (हेम० 8/4/357)-तलवार से तलवार काटा जाता है। हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण के प्रसंग में ज्ज का प्रयोग वर्तमान काल, भविष्यत्काल एवं आज्ञार्थे बतलाने के बाद भाववाच्य एवं कर्मवाच्य में भी इसके प्रयोग का विधान किया है। हिन्दी कर्मवाच्य के अनेक रूपों में इसका भी विकसित रूप पाया जाता है हउँ बलि किज्जउँ (हेम० 8/4/338)-मैं बलि जाउँ । जइ आवइ तो आणिअइ (हेम० 8/4/419)-यदि आवे तो आना जाया। जइ प्रिउ उव्वारिज्जइ (हेम० 8/4/438)-यदि प्रिय उवारा जाय। करुए मुखन को चहियत यही सजाय (रहीम)–चाही जाती है। (ख) कर्मवाच्य का भूत कालिक कृदन्तज प्रयोग करण कारक की विभक्ति से युक्त धातुओं से भूतकालिक कृदन्तज क्रिया बनाकर कर्मवाच्य का प्रयोग किया जाता था : (1) ढोल्ला मइँ तुहुँ वारिया (हेम० 8/4/330)=मैंने वारया, वारा (मना किया) (2) बिट्टीए मइँ भणिय तुहुँ (हेम० 8/4/330)=मैंने भन्या (कहा) ___ (3) जेन्ने जाचक जन रजिअ (कीर्ति०)।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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