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________________ 432 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि पिउ आणि मज्झ संतोसिहइ (सं० रास० 197)=मुझको (ii) करण कारक के अर्थ में कन्त जु सीहहो” उवमिअइ (हेम० 8/4/418)=सिंह से सत्थावत्थहँ आलवणु साहु वि लोउ करेइ (हेम० 8/4/422) स्वस्थावस्था वालों से। (iii) सम्प्रदान के अर्थ में दइवु घडावइ वणि तरुहुँ सउणिहँ पक्क फलाइ (हेम० 8/ 4/340)-शकुनियों के लिये जीविउ कासु न वल्लहउँ (हेम० 8/4/358)-किसके लिये (iv) अपादान के अर्थ में तेहिं नीहारिय घरस्स (कुमार० प्रतिबोध) घर से (v) अधिकरण के अर्थ में पिउ-संगमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व (हेम० 8/4/418)=अन्य तरुवरों पर। सिरु ल्हसिउं खन्धस्सु (हेम० 8/4/445)=कंधे पर (vi) संबंध, स्वतन्त्र कारक के अर्थ में महु कन्तहो गुट्ठ-ट्ठिअहो कउ झुम्पडा वलन्ति (हेम० 8/ 4/416)=मेरे कंत के घर रहते या रहने पर। तुअ हिअयट्ठियह, विरह विडम्बइ काउ (सं० रासक, 76)=तुम्हारे हृदयस्थित रहने पर (ख) करण कारक के विशिष्ट प्रयोग अधिकरण के अर्थ मेंनिद्दए गमिही रत्तडी (हेम० 8/4/330) निद्रा में। बरिस-सएण वि जो मिलइ (हेम० 8/4/332)=वर्ष शत में
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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