SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धातुसाधित संज्ञा I अपभ्रंश की धातुओं का विकास दो तरीके से हुआ है (1) संस्कृत धातुओं का प्राकृतिक रूप और (2) देशी धातुयें । उदाहरण स्वरूप (1) विण्णविय, विसरिअउ दोनों सीधे प्रा० भा० आ० विज्ञा, विस्मृ धातु से न आ कर प्राकृत धातु विण्णव और √विसर-प्रत्यय-इय, इउ < प्रा० भा० आ० इत से युक्त अपभ्रंश में आयी हैं। (2) छड्डिअ < छड्डु, – फुल्लिअ < √फुल्ल, कोक्किय < कोक्क आदि; परवर्ती अपभ्रंश के ये उदारहण हैं। इस तरह प्रथम प्रकार की धातुओं को प्रत्यय साधित प्रकार तथा दूसरे प्रकार की धातुओं को सिद्ध प्रकार कहेंगे। इसमें देशी धातुओं के अलावा निष्पन्न प्राकृत धातुयें भी हैं । 411 (i) प्रत्यय साधित धातुओं के उदाहरण :गालिअ, उल्लाल, चिंत, डोह, तोस, निज्जि, पड़, पी, भण, मिल्, मुण, लिह, संप, संपेस आदि के साथ इअ प्रत्यय लगता है । घडिअय के प्रकार का उदाहरण–उट्ठ, चड़, निवड़, पसर, बोल्ल, वाह आदि के साथ इअय प्रत्यय लगता है । वारिआ के ढ़ंग पर, विन्नासिआ, मारिआ आदि । इद प्रत्यय का उदाहरण - कधिद, विणिम्मविद, विहिद आदि । (ii) सिद्ध प्रकारः - गय, खय, निग्गय, मुअ, सुअ, फुट्ट, निवट्ट, इट्ट, दिट्ठ, पइट्ठ, पब्भट्ठ, दड्ढ, उव्वाण, छिण्ण, विइण्ण, पत्त, समत्त, तिंत; किअय, मुअय, दिट्ठय, पइट्ठय, पणट्ठय, जुत्तय, विढत्तय, वृत्तय; वुन्नय; मुआ, हुआ, हूआ, भग्गा, तुट्ठा, पलुट्टा, दड्ढा, दिण्णा, उव्वत्ता; आगद, गद, किद; स्त्रीलिंग - पइट्टि, दिट्टि, रुट्ठि, दिण्णी, रुद्धी; गइअ, मुइअ; रत्तिअ । (i) भूतकालिक कर्मवाच्य कृदन्त के इत रूप में अपभ्रंश में दो प्रकार की धातुयें होती हैं :- (1) सेट् (2) अनिट् । कअअ, कय, किय, कइय (कृत), चत्त ( त्यक्त) कहिअ, कहिय ( कथित) । (ii) धातुओं का प्रत्यक्ष संबंध (देशी धातुओं में भी) भूतकालिक कर्मवाच्य कृदन्त के प्रत्ययों में है । इस प्रकार की रचना न० भा० आ० भाषाओं में भी पायी जाती है ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy