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________________ क्रियापद 395 कुमारपाल प्रतिबोध में - 'इज्ज (केवल जीरो) वाले रूप भी प्र० पु०, म० पु० ए० व० में पाये जाते हैं: - दइज्ज, चइज्ज (< त्यज्), भमिज्ज । हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में ज्ज, ज्जा प्रत्यय वर्तमान, भविष्य एवं विध्यादि अर्थों में पाया जाता है :- होज्जइ, होज्जाइ, होज्जाहिँ, होज्जा, होज्जहु, होज्जउँ इत्यादि । होज्ज, विनडिज्जइ गिलिज्जइ (हेम० 4/370); बलि किज्जउँ सुअणस्सु । यहाँ पर होज्ज का प्रयोग क्रियातिपत्ति के अर्थ में हुआ है। प्रार्थना अर्थ में भी ज्ज का प्रयोग होता है - गोरि सु दिज्जहि कंतु (हेम - 4 / 383); देसिज्जन्तु भमिज्ज-तो देसडा चइज्ज (हेम० 4 / 418 ) यहाँ पर भमिज्ज और चइज्ज विधि अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। रूसिज्जइ, बिलिज्जइ (हेम० 4/418); देज्जहिं (हेम० 4/ 428 ) - वर्तमान अर्थ प्रयुक्त हुआ है। खज्जइ नव कसरक्केहिँ, पिज्जइ नउ घुन्टेर्हि - (हे० 4/423) यह भी वर्तमान अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। अपभ्रंश में हेतुहेतुमद्भावादि अर्थों में भी लोट् लकार के न्तु प्रयोग के साथ साथ 'ज्ज' प्रत्यय का प्रयोग होता है - लज्जेज्जन्तु वयंसिअहु, जइभग्गा घर एन्तु (हेम० 4/351 ); जइ ससि छोलिज्जन्तु (हेम० 4/39), हिन्दी में आदर सूचक आज्ञा के रूप इसी 'इज्ज से संबद्ध हैं :- दीजिये, कीजिये आदि । इय्य वाले रूपों से हिन्दी में आइये, खाइये, आदि का विकास हुआ है। वस्तुतः न० भा० आ० भाषाओं में आकर विधि के रूप आज्ञा के प्रकार में परिवर्तित हो गये । इसका बीज तो हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में ही मिलता है। किन्तु यह प्राकृत पैंगलम् और उक्ति व्यक्ति प्रकरण से स्पष्ट होने लगता है । अपभ्रंश में पूर्वोक्त रूपों के अतिरिक्त भी कुछ रूप मिलते हैं जो कि संस्कृत, पालि तथा प्राकृत से आये हुए हैं। संस्कृत भाषा में ही प्रायः देखा गया है कि धातु रूपों का प्रयोग स्वतन्त्र
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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