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________________ 394 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि विधि प्रकारएक वचन बहु वचन उत्तम पु०-करिज्जउ, किज्जउँ मध्यम पु०–करिज्जहि, करिज्जइ, करिज्जहु करेज्ज, करेज्जसु। अन्य पु०–करिज्जउ करिज्जंतु, करिज्जहुँ ऊपर के रूपों में ज्ज (सं० याम, याव विध्यर्थ प्रत्यय या की तरह ज्ज है) आज्ञार्थक प्रत्यय से विध्यर्थ प्रत्यय होता है। परिनिष्ठित प्राकृत की भाँति अपभ्रंश में भी विध्यर्थक-इज्ज प्रत्यय होता है। अपभ्रंश के कर्मवाच्य में भी यह-इज्ज प्रत्यय होता है। इस कारण कभी-कभी दोनों में भेद करना बड़ा कठिन हो जाता है। विध्यर्थक-इज्ज प्रारम्भिक प्राकृत-एय्य का विकसित रूप है। जबकि कर्मवाच्य का इज्ज परिनिष्ठित प्राकृत इय या इय (य) से विकसित हुआ है। इस प्रकार दोनों का विकास क्रम इस प्रकार हुआ : विधि प्रकार=य > ऐय्य-ऐज्ज > इय्य-इज्ज कर्मवाच्य या > ऐय्य-ऐज्ज > इय्य-इज्ज विधि प्रकार के रूपों में प्रायः वे ही तिङ चिह प्रत्यय जुटते हैं जो कि आज्ञा में भी पाये जाते हैं। ये रूप प्रायः अपभ्रंश के अन्य तथा मध्यम पु० ए० व० में पाये जाते हैं : अन्य पु० ए० व० :- विइज्जइ, संतोसिज्जइ, वंदिज्जइ। संदेश रासक में 'इज्ज के स्थान में इज्जउ रूप मिलता है। (भयाणी, $65-पृ० 36) : उत्तम पु० ए० व०-'इज्जउ लज्जिज्जउ मध्यम पु० ए० व०-'इज्जसु=पढिज्जसु, कहिज्जसु
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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