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________________ अव्यय 347 (3) शेष संख्याओं को गिनने वाली संख्या के साथ अर्धमागधी में खुत्तो < कृत्वः रूप लगाया जाता था। दुक्खुत्तो < द्विकृत्वः दोबार तिखुत्तो और तिक्खुत्तो < त्रिकृत्वः तीन बार; तिसत्तक्खुत्तो < त्रिसप्त कृत्वः; अणेगसय सहस्सक्खुत्तो < अनेकशतसहस्रकृत्वः हजारों बार । पिशेल के अनुसार (8451) महाराष्ट्री में इसके लिये 'हुत्त' रूप प्रचलित था-सअहुत्तं सैंकड़ों बार, सहस्सहुत्तं हजारों बार। (4) अ० म० भा० एवं अपभ्रंश में हिं का प्रयोग होता था। यह गणनात्मक क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता था-विहिं दोबार, तिहिं तीन बार; पंचहिं=पाँच बार आदि। ___ 'बार' के अर्थ में च्च का भी प्रयोग होता था दोच्चं, दुच्च दोबार'; तच्च-तीन बार। (5) 'प्रकार' बताने के लिये संस्कृत की भाँति प्राकृत में विशेषणात्मक रूप विह < विध का प्रयोग होता था और क्रिया विशेषण के रूप में हा < धा का प्रयोग प्राकृत में होता था। (क) दुविह, तिविह, चउविह, पञ्चविह, छविह, सत्तविह, अट्ठविह, नवविह और दसविह आदि । (ख) दुहा, तिहा, चउहा, पञ्चहा, छहा, सत्तहा, अट्ठहा, नवहा, दसहा आदि। संदर्भ 1. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण 8434-प्रकाशन-बिहार राष्ट्र भाषा परिषद, पटना इस विभाजन का आधार हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास-पृ० 509-डॉ० उदय नारायण तिवारी-से लिया गया है। 2. -
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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