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________________ 346 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि 96-छण्णउदिं (षण्णवति)। 97–सत्तणउदिं (सप्त-नवति) 98-अट्ठणउदिं (अष्ट-नवति) 99–णवणवदिं (नव-नवति) 100-सयमो (शत)। 101-एकोत्तर सयम (एकोत्तर-शत)। 102-दुत्तर सयम (द्वयुत्तर-शत) अधिकांश रूपों का ढाँचा मध्य भारतीय आर्य भाषा के रूपों की तरह ही अपभ्रंश में भी होता है। अपूर्ण संख्या को व्यक्त करने वाले शब्द अन्य प्राकृत की भाँति अपभ्रंश में भी होता है। (आधा) को व्यक्त करने के लिये अद्ध या अड्ड < अर्ध शब्द मिलता है। पिशेल (8450) का कहना है कि जैसा संस्कृत में होता है वैसा ही प्राकृत में डेढ़, अढ़ाई आदि बनाने के लिये पहले अद्ध या अंङ्क रूप उसके बाद जो संख्या बतानी होती है उससे ऊँचा गणना अंक रखा जाता है। अड्डाइज्ज, अड्ड+तिज्ज, * तीज्ज, तिज्ज से व्युत्पन्न होता है=अर्ध तृतीय, अधुट्ठ, अद्ध + * तूर्थ से बना है=अर्ध चतुर्थ (=3%2); अद्धट्ठम अर्धाष्टम (-712); अद्धनवम (=87) अद्धछठेहिं भिम्खासयाइं (=550) अड्डाइज्जाइं भिक्खा सयाई (250), अद्धछट्ठाई जोयणा (=5% योजन), 12 अंक के लिये दिवड्ढ शब्द का प्रयोग किया जाता था। दिवड्ड संय का प्रयोग (=150) डेढ़ सौ के लिये किया जाता था। गणनात्मक संख्या शब्द 1. अ० मा० में सई < सकृत है। इसका अर्थ एक बार है। 2. एकदा के अर्थ में एक्कसि और एक्कसिअं का प्रयोग होता है। इसके लिये एक्कबारं < एक वारम् भी चलता है।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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