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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि तृतीया बहुवचन के एभिः का नाम रूपों में प्रवेश एवं कुछ स्थानीय बोलियों के यत्र तत्र शब्द रूपों का लिया जाना निश्चित रूप से परिलक्षित किया जा सकता है। डॉ० कीथ का कहना है कि कहीं-कहीं इस प्रकार के उद्धृत शब्द ऋग्वेदीय शब्द रूपों के समान ही प्राचीन हो सकते हैं, जैसे ल से युक्त शब्द और 'जज्झती' जिसका ज्झ आर्य भाषा के (Gzh) स्थानीय 'क्ष' का रूप है । इसके विपरीत ऐसे शब्द रूप भी देखने को मिलते हैं जो वर्ण-विज्ञान की दृष्टि से ऋग्वेद में साधारणतया प्राप्त रूपों से अधिक समुन्नत हैं। इन रूपों के विषय में यह कहा जा सकता है कि. संभवतः ये परिवर्तन अनार्यों के सम्मिश्रण से हुए हों। यह भी संभावना की जा सकती है कि कुछ शब्द समाज के निम्न वर्ग से लिए गए हों जैसे 'कृत' के साथ-साथ प्रयुक्त 'कर' में और 'कर्त' के साथ-साथ प्रयुक्त कार में हम अनियमित मूर्धन्य वर्णों को पाते हैं। इसी प्रकार के अनियमित उच्चारण सम्बन्धी परिवर्तनों के उदाहरण और भी हैं जैसे- कृच्छ में प्स् के स्थान में छ्, ज्योतिष् में द् य् के स्थान में ज्य, शिथिर में झ के स्थान में इ, बृश के स्थान में बुस् इत्यादि । यद्यपि इन स्थानीय बोलियों के विशिष्ट स्थानों का निर्देश करना असम्भव है तथापि ऋग्वेद में रेफोच्चारण की प्रवृत्ति का सम्बन्ध स्वभावतः ईरान से है। आगे चलकर ल् का प्रयोग पूर्वीय भारत का सम्बन्ध बताता है। इसी तरह 'सूरेदुहिता' शब्द के प्रयोग में ए संभवतः az का स्थानीय प्रभाव है, जैसा कि पूर्वी प्राकृत में परिलक्षित भी होता है। 6 आर्यों की भिन्न-भिन्न शाखायें समय-समय पर भारत में आई थीं, और प्रत्येक शाखा की बोली एक-दूसरे से कुछ भिन्न थी । यह भिन्नता प्रारम्भ में नाममात्र की थी। उनके सूक्तों, स्तवों एवं गेय गीतों में एक प्रकार की साधु भाषा विकसित हो चुकी थी, यही उनकी समस्त साहित्य निधि थी जो हमें ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में मिलती है। जब आर्य लोग प्रथम बार पंजाब में आकर बस गए तो यह स्वाभाविक था कि उनकी भाषा का सम्बन्ध फारस तक की भाषा से रहा हो। उन दोनों की भाषा में साम्य अवश्य होगा। यह भी संभव है कि सीमांत प्रदेशों की बोलियाँ (अर्थात्ं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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