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________________ भारतीय आर्य-भाषा अमुक देवता है। प्रत्येक ऋचा का छन्दस् अर्थात् वृत्त भी लिखा रहता है। देवता का अर्थ है विषय-जिसके विषय में या जिसे सम्बोधित कर ऋचा कही गई हो। बहुत सी ऋचाओं में अनेक ऋषियों के नामों का उल्लेख भी उसी तरह रहता है, जिस तरह हिन्दी के पुराने कवि कविता में अपने नाम का उल्लेख कर देते थे। ऋक् संहिता के पहले मंडल के पहले पचास सूक्त तथा समूचा आठवाँ मंडल कण्व वंश के ऋषियों का है। दूसर। गृत्समद, तीसरा विश्वामित्र, चौथा वामदेव, पाँचवाँ आत्रेय, छठा बार्हस्पत्य और सातवाँ वसिष्ठ वंश का । नौवें मण्डल में एक ही देवता-सोमपवमान के विषय में विविध ऋषियों के सूक्त हैं, और दसवाँ तथा पहले का शेषांश (51.191 सूक्त) विविध ऋषियों के और विविध विषयक इस तरह हम देखते हैं कि भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में प्राचीनतम साक्ष्य ऋग्वेद है। ऋग्वेद के सूक्तों की बृहत् संहिता की भाषा वस्तुतः .पुरोहितों से सम्बन्ध रखने वाली परम्परा मूलक भाषा है। वस्तुतः ऋग्वेद की रचना एक समय में नहीं हुई थी। इसकी रचना विभिन्न समयों में तथा विभिन्न स्थानों में हुई थी। कुछ सूक्तों की रचना निस्सन्देह पंजाब में हुई थी। इसके अतिरिक्त कुछ सूक्तों की रचना उस प्रदेश में हुई थी जिसको कि ब्राह्मण ग्रन्थों में कुरुओं और पांचालों का निवास स्थान माना गया है। ऋग्वेद में बहुत से जनसमूहों का समन्वय माना जाता है। इन्हीं लोगों के योग से कुरुओं और पांचालों की उत्पत्ति मानी गई है। कुछ विद्वानों का कहना है कि ऋग्वेद के छठे मंडल की रचना आर्यों के भारत में प्रवेश करने से पहले हुई थी। किन्तु अभी तक यह विचार प्रामाणिक नहीं माना जा सका है। फिर भी विभिन्न रूपों और विभिन्न स्थानों में रचना होने के कारण ऋग्वेद की भाषा में भिन्न-भिन्न स्थानीय बोलियों का मेल दिखाई देता है। पंडितों ने विशद विचार मंथन के बाद में स्थानीय बोलियों की विशेषताओं को निर्धारण करने का निष्कर्ष निकाला है। प्रथम स्थापना है कि-'दो स्वरों के मध्य में रहने वाले धू, भ, ड् और द का ह्, क्त और व्व के रूप में विवृत उच्चारण, ल् का र् में परिवर्तन, सार्वनामिक
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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