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________________ 322 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि काणंपि, काणंवि > काणइ > किन्हीं (यह व्युत्पत्ति पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं हो पाती।) साकल्य वाचक सव्व = सब (सर्व) शब्द एक० बहु० कर्ता-सव्वु, सव्वो, सव्व सब्वे, सव्व, सव्वा कर्म-सव्वु, सव्व, सव्वा सव्व, सव्वा करण-सव्वेण, सव्वें सव्वेहिं (सव्वेसिं) अपादान-सव्वहाँ, सव्वाहां सव्वहुं, सव्वाई सम्बन्ध-सव्वसु, सव्वस्सु सव्वहं, सव्व, सव्वा सव्वहो, सव्व, सव्वहा अधिकरण-सव्वहिं सव्वहिं नपुंसक लिंग बहु० __एक० कर्ता-सव्वु, सव्व, सव्वा सव्वइं, सव्वाइं कर्म-सव्वु, सव्व, सव्वा सव्वइं, सव्वाइं शेष रूप पुल्लिंग की तरह होंगे। सर्वार्थ बोधक संस्कृत सर्व शब्द का प्राकृत में सव्व के बाद अपभ्रंश में साह एवं सव्व दोनों शब्द चल पड़ा। साह शब्द संभवतः सर्वोपि > सव्वोमि > सहि > साह । पिशेल ने साह शब्द की व्युत्पत्ति शाश्वत् से मानी है जो कि उचित है। प्रथमा ए० व० में साह एवं सव्वु > सर्वः रूप होता है। द्वि०, ए० व० में साहू, साह, सव्वु एवं सव्वं होगा। ब० व० में साहे एवं सव्व आदि। तु० ए० व० में साहें, सव्वेण, सव्वें इत्यादि रूप पूर्ववर्ती रूपों की तरह होगा। और भी शब्द सर्वादि गण में हैं जिनका उल्लेख हेमचन्द्र ने अपने अपभ्रंश सूत्रों में नहीं किया है, पर वे शब्द प्राकृत में तथा अपभ्रंश दोहों में भी पाये जाते हैं।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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