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________________ रूप विचार 321 (1) को < कः, का < का (स्त्री०), किं-कि-की (< किं) काइकाइँ (< कानि), के (< के, ब० व० रूप)। कवण शब्द का प्रयोग डा० तगारे के अनुसार सर्व प्रथम छठी शताब्दी जोइन्दु के परमात्म प्रकाश में पाया जाता है। तब से लगातार इसका प्रयोग 1200 ई० तक होता रहा। इसकी व्युत्पत्ति कमन (सामान्यतया क+पुनर् से कँवण की संभावना की जाती है) < कम + अ (या क+म) + न। इस आधार पर इसका रूप इस प्रकार हो सकता है। कर्ता-कर्म, नपुं० ए० व०, अशो० कि (म्) मम < * किमम; निय प्रा० कम (म) < * कमम, अप० केम, किम, किव < * केमम, * किमम, अप० किमप (क्रमदीश्वर के अनुसार) < * किमबम् < * किम (म्) अम्, कमणु, पुं०-अप० कवणु < * कमनः, स्त्री अप०-कवण < * कमना, करण-प्रा० किणा < कि+ना या * किन + आ, अप० कव णेण < * कमनेन; अपादान-अप कवणहे <* कमनसः, कवणह < * कमणस । करण-पा० केन < केन, प्रा० किना < * किना, केन अप० केण, केणु, कई < * केनः । अपादान पा० कस्मा, प्रा० कम्हा < कस्मात्, अप० कहाँ, पा० किस्मा < * किस्मात, प्रा० किणो < किनः (अप० त० किणु, किनु), कत्तो <कात + तस्, क ओ < * कतः काओ < * कातः, अप० कऊ < कतः, काहं, काहँ < का + हम (क्रिया विशेषण); सम्बन्ध-पुं०, नपुं० प्रा० कस्स < कस्य, प्रा० कास, मा० काह०, अप० कासु, काहे < * कास (:); पा० किस्स स्सु < * किष्य सु, महा० कीस, अप० किसे, किहे, कहु, काहु, काहो काह, अधिकरण० पु०, नपुं०, पा० कम्हि, कस्सिं, प्रा० कहिं < * कभिम्, अप० कहिं, कहि, स्त्री० अप० काहिं < * काभिम्। अनिश्चय सूचक :-'कोई शब्द है। इसकी उत्पत्ति संस्कृत 'कः + अपि' (कोऽपि) से मानी जाती है। प्रा० भा० आ० कोऽपि > म० भा० आ० कोवि > अप० कोइ। हिन्दी 'किसी' तथा 'किन्हीं' की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी जाती है।61 'कस्यापि > कस्सवि > कस्सइ > हि० किसी (रा० कस्या); केषामपि > * कानामपि > म० भा० आ०
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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