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________________ रूप विचार 313 सम्बन्ध–पुं०–एसिं (महा०), इमाण (महा०), इमेसिं (अ० मा०)। स्त्री० - इमाणं (महा० शौ०), इमिणं (महा०), इमासिं (अ० मा०)। अधिकरण-फु – एसु (जै० महा०), इमेसु (महा०, शौ०) इमेसु (शो०)। इस प्रकार इस शब्द की रूपावली तीनों लिंगों में प्रायः एक सी ही है। तीनों लिंगों का अन्त रूप अकारान्त ही होता है। इस सर्वनाम शब्द की रूपावली में ए और एय एक सा मिला हुआ है। इस कारण यह बहुत कुछ संस्कृत एतद् शब्द के रूप से भी मेल खाता है। दोहा कोश में ए का प्रयोग ए < एतद् > एअ से अधिक समता है। आअ + ए >* आ + ए > ए,-ए से उतना सम्बन्ध नहीं रखता है। इदम् से भी एअ और एय रूप बनता है। एतद् के एय शब्द के षष्ठी एक वचन में एयह रूप होता है और इदम् शब्द के रूप में भी हु का प्रयोग होता है तथा आयो रूप भी होता है। इसी प्रकार सप्तमी ए० व० में एयइ दोनों के शब्द रूप में होता है। एतद् और इदम् शब्द के रूपों में एकता हो जाने के कारण दोनों का भेद मिट गया और आगे चलकर इसी कारण इदम् शब्द का रूप दृष्टिगोचर नहीं होता। एतद् और इदम् शब्द निकटवर्तिता तथा निश्चय वाचकता का बोधक है। हेमचन्द्र ने इदम् शब्द की जाह आय आदेश अपभ्रंश के लिये किया है। इदम् शब्द के इमु रूप का भी उसने विधान किया है। आय शब्द की रूपावली इस प्रकार होगीएक० बहु० कर्ता० - आयु, आयो, आय, आया आये, आय, आया कर्म० - आयु, आय, आया आय, आया नपुं०-आयइं, नपुं०-आयइं आयेण, आयेणं, आयें आयेहिं, आयहिं, आयाहिं नपुं०-आयई, आयइ पं० ष०- आयहो, आयहु, एहो, एहु आयह अधिo- आयहिं, इमम्मि, एयइ करण आयहिं
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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