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________________ 282 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि शब्द थे ही नहीं, लेकिन उसका स्थान प्रायः अकार ने ले लिया था। अतः स्त्रीलिंग के आकारान्त या अकारान्त शब्दों के रूपों में कोई अन्तर नहीं। अपभ्रंश में इनकी विशेषता सुरक्षित है। पर इनका अकारान्त स्त्रीलिंग के शब्दों की विशेषता उस प्रकार की नहीं है जैसी कि अकारान्त पुल्लिंग या नपुंसक लिंग के शब्द रूपों की, प्रत्येक कारक में होती है। पिशेल26 का कहना है कि प्राकृत भाषाओं में कहीं कहीं इक्के-दुक्के और वे भी पद्यों में-इ तथा उ वर्ग के स्त्रीलिंग के रूप पाये जाते हैं जैसे भूमिसु और सुत्तिसु (899)। अन्यथा-'इ और उ वर्ग के स्त्रीलिंग जिनके साथ-ई और ऊ वर्ग के शब्द भी मिल गये हैं, एक वर्ण वाले और अनेक वर्ण वालों में विभक्त हैं। इनकी रूपावली-आ में समाप्त होने वाले इन स्त्रीलिंग शब्दों से प्रायः पूर्ण रूप से मिलती है। पी० एल० वैद्य के अनुसार अपभ्रंश के स्त्रीलिंग में जैसे आकारान्त शब्दों के रूप बनते हैं वैसे ही ईकारान्त और ऊकारान्त शब्दों के भी रूप बनते हैं, इससे ह्रस्व इकारान्त और इस्व उकारान्त का भी ग्रहण होता है। इनके शब्द रूप भी उन्हीं शब्दों की भाँति बनते हैं। स्त्रीलिंग के विभक्ति चिह ० एकवचन बहुव० प्र० - ० ___०, उ, ओ द्वि० - ० उ, ओ तृ० - ए (इ) पं० - सम्ब० - हे (हि) अधि० - हि (1) डॉ० तगारे ने विकासात्मक दृष्टि से ध्यान देते हुए कहीं कहीं कुछ भिन्न विभक्तियों का नाम दिया है जो कि हेमचन्द्र के अनुकूल नहीं हैं। मुद्धा शब्द स्त्रीलिंग का परवर्ती अपभ्रंश में आ का हस्व अ होता है। Durn
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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