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________________ रूप विचार बहुवचन आम् का हं, हुं आदेश विकल्प करके होगा - गिरिहं तरुहुं, गिरिहं, तरुहं। प्रकृत रूप गिरि, तरु भी रहता है। ये रूप पी० एल० वैद्य के आधार पर दिये गये हैं (6) अधिकरण सप्तमी में ङि के स्थान पर हि आदेश करके गिरिहि, तरुहि रूप बनता है । संस्कृत में ङि का औ होता है। प्राकृत में मि होता है। अपभ्रंश में हि आदेश संभवतः म्मि का म्हि होकर हि, मात्र अवशिष्ट रहा । बहुवचन सुप् के स्थान पर हुं आदेश गिरिहुं, तरुहुं रूप बना । यह रूप भी पी० एल० वैद्य के आधार पर है। हेमचन्द्र के अनुसार तो सुप् को हिं (हेम० 8 / 4/347) होना चाहिये । पर प्राकृत से समता करने पर हुं ही अधिक उचित है । प्राकृत सु, सुं, से, हुं होना सरल है । (7) सम्बोधन का रूप प्रथमा की भाँति होता है। बहुवचन में हो रूप होगा । एक वचन प्रथमा द्वि० स्त्रीलिंग - तृ चतु० पञ्च० ष० सप्त० गिरिहि सम्बो० - गिरि, गिरी गिरि, गिरी गिरिएं, गिरिण, गिरि - O गिरिहे गिरि, गिरिहे गिरि, गिरी 281 बहुवचन गिरि, गिरी गिरि, गिरी गिरिहिं ० गिरिहुं गिरि, गिरिहं, गिरिहुं गिरिहुं गिरि, गिरी, गिरिहो प्राचीन भारतीय आर्य भाषा और प्राकृत के स्त्रीलिंग में आकारान्त शब्द प्रयुक्त होते थे, किन्तु वे ही शब्द अपभ्रंश में आकर अकारान्त हो गये। 25 इसका यह मतलब नहीं कि अपभ्रंश में आकारान्त .
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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