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________________ 224 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि से व्युत्पन्न माना जा सकता है। और उत्तम पु० ए० व० के मस के आधार पर है। संभवतः अपभ्रंश के ह इससे प्रभावित है। उत्तम पु० और अन्य पु० ब० व०-अहं, तथा अहि भी इससे प्रभावित है। अपभ्रंश साहित्य की आज्ञा (लोट् लकार) में विभिन्न प्रकार के रूप पाये जाते हैं, हेमचन्द्र ने कुछ ही रूपों का निर्देश किया है। बहुत से रूपों का क्रमिक-विकास भी पाया जाता है-अहि < प्रा० भा० आo-धि का रूप सर्वत्र पाया जाता है। अन्य पु० ए० व० उ < प्रा० भा० आ० तु का रूप बहुत स्थलों पर पाया जाता है, मध्य० पु०-हु < प्रा० भा० आ० * थु,-असु,-एसु < प्रा० भा० आ०-स्व और-उ का रूप है। अपभ्रंश में उ का रूप बहुत पाया जाता है। यह सामान्यतया वर्तमान काल और आज्ञा में पाया जाता है। आज्ञा वस्तुतः वर्तमान काल ही है। आज्ञा म० पु० ब० वo-ह (अह, एह रूप पश्चिमी अप० में पाया जाता है) रूप प्राकृत से प्रभावित है। म० पु० ए० व० में - अहि, इ और उ भी प्रचलित है; अह, अहु, उ के रूप पूर्वी अपभ्रंश में देखे जाते हैं। पश्चिमी अपभ्रंश में सामान्यतया अहु, अहि - इ वाला रूप देखने को मिलता है; असु और-एसु रूप भी देखने में आता है। म० पु० ब० व० में अहू, अह, अह तथा कभी-कभी पूर्वी अप० में इज्जह-ह रूप भी दीख पड़ता है। हेमचन्द्र ने इसका उल्लेख नहीं किया है। अहु की व्युत्पत्ति प्रा० भा० आ० -* थु से मानी जा सकती है। अहु अन्य० पु० ब० व० के आधार पर-अह < प्रा० भा० आ० थ का अहा भी हो सकता है। इस तरह वर्तमान का प्रभाव लोट् लकार (आज्ञा) पर देखा जा सकता है। अन्य पु० ए० व० उ < प्रा० भा० आ० तु का विकास स्पष्ट है; अन्य पु० ब० व०-अह, वर्त० का० इ, अहि, उं-अह के आधार पर है। इसके विभिन्न रूप न० भा० आo में देखे जा सकते हैं। प्राकृत भविष्यत्काल के रूप की तरह अपभ्रंश में भी होते हैं। स और ह < प्रा० भा० आ० स्य से व्युत्पन्न है। हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में दोनों प्रकार के रूप पाये जाते हैं। इन दोनों के रूप न० भा० आ० में पाये जाते हैं।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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