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________________ अपभ्रंश और देशी किन्तु हेमचन्द्र ने स्पष्टरूप से अपने प्राकृत व्याकरण 2 (4-2) और देशी नाममाला” (1-37) में उसे देशी के अन्तर्गत मानने से इन्कार कर दिया है। उनका कहना है कि देशी शब्दों में ( 1-47 ) प्रकृति प्रत्यय का भेद नहीं हो सकता और न तो देशी शब्दों के लिये (नहि देशी शब्दानामुपसर्गे संबंधो भवति 1 - 95 ) उपसर्ग का ही विधान किया जा सकता है। इस प्रकार की बातों को प्रस्तुत करते हुए हेमचन्द्र ने दूसरी दृष्टि से संभवत: अन्य लोगों की आलोचना की है । 'धात्वादेश' की दृष्टि से प्रकृति (मूलरूप) के विभिन्न क्रियारूप और अर्थ हो सकते हैं। इस दृष्टि से देशी शब्द की प्रकृति भूल सी जाती है। मतलब यह कि जब धात्वादेश का एक ही रूप हो सकता है दूसरा नहीं, तब तो उसे देशी हरेक दृष्टि से कह सकते हैं। इसीलिए हेमचन्द्र ने उन शब्दों को भी देशी नाममाला में संकलित किया है। कप्परिअं कडंतरिअं, अविअं, अट्टट्टो, अज्झत्थो ( 1 - 10 ) इत्यादि उद्धरणों को हेमचन्द्र ने दे० ना० मा० में उद्धृत कर अपनी समीक्षा दी है कि यद्यपि ये क्रियावाची हैं फिर भी संज्ञा में दिखाई देने से धात्वादेशों में संकलित नहीं किये गये हैं और इसी कारण देशी में संकलित कर लिया है। इससे स्पष्ट होता है कि हेमचन्द्र पूर्ववर्ती लोगों से अपना भिन्न मत रखता है I 193 इस प्रकार प्राकृत वैयाकरणों ने देशी शब्दों के नाम और धातुओं को संस्कृत के नाम (संज्ञा) और धातुओं के स्थान में आदेशों द्वारा सिद्ध करके तद्भव विभाग के अन्तर्गत रख दिया है। हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के द्वितीय पाद तथा चतुर्थ पाद के कुछ सूत्रों से पूर्वोक्त बात की प्रतीति होती है। हेमचन्द्र ने देशी नाममाला में देशी नामों का संग्रह किया है तथा देशी धातुओं का प्राकृत व्याकरण में, संस्कृत धातुओं की जगह आदेश रूप में उल्लेख करते हुए पूर्ववर्ती वैयाकरणों के मत का प्रतिवाद किया है- एतेचान्यैर्देशीषु पठिता अपि अस्माभिधात्वादेशीकृताः (हेम० प्रा० व्या० 4 / 2 ) । अतः धात्वादेश भी देशी ही कहे जायेंगे, तद्भव नहीं । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि हेमचन्द्र ने देशी नाम माला (1/10) में लिखा है कि जिनका व्याकरण में धात्वादेश किया
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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