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________________ अपभ्रंश भाषा 157 विकल्प करके रेफ का निम्न भाग लुप्त होता है वैसे ही मागधी में भी होता है-शद-माणुश-मंश-भालके कुम्भ शहस्र-वशाहे शंचिदे इत्याद्यन्यदपि द्रष्टव्यम्। इस तरह हम देखते हैं कि मार्कण्डेय ने थोड़े थोड़े भेद के साथ अपभ्रंश भाषा के 3 भेद किये हैं1. नागर 2. ब्राचड और 3. उपनागर। इस भेद को क्रमदीश्वर ने भी स्वीकार किया है। मुख्य अपभ्रंश नागर है। मार्कण्डेय के अनुसार पिंगल की भाषा नागर है। ब्राचड नागर अपभ्रंश से निकली हई बताई गयी है जो कि मार्कण्डेय के अनुसार सिन्ध देश की बोली है-सिन्धु देशोद्भवो ब्राचडोऽपभ्रंशः। इसके विशेष लक्षणों में से मार्कण्डेय ने दो बताये हैं-च और ज के आगे इसमें य लगाया जाना और ष तथा स का श में बदल जाना। ध्वनि के वे नियम जो मागधी के व्यवहार में लाये जाते थे और जिन्हें पृथ्वीधर ने सकार की भाषा के ध्वनि नियम बताये हैं, अपभ्रंश में भी लागू बताये जाते हैं। इसके अलावा आरम्भ के त और द की जगह ट और ड का हो जाना एवं भृत्य आदि शब्दों को छोड़कर ऋकार वर्ण को जैसे तैसे रहने देना-इसके विशेष लक्षण हैं। नागर और ब्राचड भाषाओं के मिश्रण से उपनागर निकली है। 'शाक्की' या 'शक्की' को भी अपभ्रंश भाषा में सम्मिलित किया गया है जिसे मार्कण्डेय संस्कृत और शौरसेनी का मिश्रण समझते हैं। यह एक प्रकार की विभाषा मानी गयी है। अपभ्रंश के भेद उपनागर।15 के अन्तर्गत पुरूषोत्तम ने क्षेत्रीय बोलियों का भी उल्लेख किया है जैसे वैदर्भी, लाटी, औड्री, कैकेयी, गौडी और कुछ प्रदेशों की बोलियाँ जैसे-टक्क, वर्वर, कुन्तल, पाड्य, सिंहल आदि। इस प्रकार अपभ्रंश भाषा की बोलियाँ सिंध से लेकर बंगाल तक बोली जाती रही होगी। हेमचन्द्र ने मुख्य उपबोलियों का उल्लेख करके एक ही प्रकार की अपभ्रंश के अन्तर्गत सबका समन्वय करने का प्रयत्न किया है। अपभ्रंश भाषा जनता की भाषा रही है। इसका सम्बन्ध वैदिक भाषा से भी जोड़ा जाता है। विभक्तियों के कुछ रूप सीधे संस्कृत
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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