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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि का बहुत स्थल पर परिपालन नहीं देखा जाता है। दूसरी बात यह कि जो लोग यह आक्षेप करते हैं कि अपभ्रंश का व्याकरण संस्कृत में लिखकर अपभ्रंश में क्यों नहीं लिखा। इसका कारण स्पष्ट है, हेमचन्द्र ने जितना भी व्याकरण लिखा है सब संस्कृत में ही लिखा है स्वभावतः अपभ्रंश का व्याकरण भी संस्कृत में लिखा । संस्कृत में व्याकरण लिखने की पद्धति ही चल पड़ी थी। कारण कि संस्कृत का व्याकरण बड़ा विशाल एवं निर्दुष्ट होता था। उसकी पारिभाषिक शब्दावलियाँ अधिक परिष्कृत एवं सुगम्य हो चुकी थीं। निदानतः संस्कृत में व्याकरण लिखने में सुविधा अधिक होती थी । हेमचन्द्र के परवर्ती काल तक यही बात रही । प्राकृत के साथ-साथ अपभ्रंशं के जितने भी व्याकरण लिखे गए सभी संस्कृत में ही थे । यहाँ तक कि जीवित भाषा 'कोसली बोली' का व्याकरण भी काशी के पंडित दामोदर ने राजकुमारों को लिखाने के लिये उक्ति व्यक्ति प्रकरण संस्कृत में ही लिखा । अपभ्रंश एवं प्राकृत में व्याकरण न लिखे जाने का कारण यह भी हो सकता है कि कभी-कभी भाषा की अस्पष्टता के कारण विषय वस्तु स्पष्ट न होकर उलझ जा सकती थी । भाषा की अस्पष्टता व्याकरण को बहुत कुछ उलझन में डाल देती । अतः संस्कृत में व्याकरण लिखने की प्रथा सी ही चल पड़ी थी। इसके अतिरिक्त अपभ्रंश भाषा में व्याकरण न लिखे जाने का कारण यह भी हो सकता है कि हेमचन्द्र के समय तक अपभ्रंश उन भाषा से अपना नाता तोड़ चुकी थी, यह सुसंस्कृतों की भाषा हो चुकी थी । यद्यपि इसीके विकसित रूप ने जनभाषा का स्थान ग्रहण किया था फिर भी जिनका ज्ञान किताबी मात्र रह गया था उनके लिये आवश्यक था कि व्याकरण के नियमों को तो संस्कृत में स्पष्ट रूप से बता दिया जाए किन्तु उसका उदाहरण अपभ्रंश से दिया जाय । भाषा का स्पष्ट स्वरूप बताने के लिये ही अपभ्रंश के पूरे दोहे पेश किये गये। इसी बात का स्पष्टीकरण पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने (पुरानी हिन्दी पृ० 29-30) अपने ढंग से किया है - 'जिन श्वेताम्बर जैन साधुओं के लिये या सर्व साधारण के लिये उसने व्याकरण लिखा वे संस्कृत प्राकृत 1 148
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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