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________________ अपभ्रंश भाषा 147 अपभ्रंश का व्याकरण लिखा है वह सीमित अपभ्रंश का व्याकरण नहीं है, वह व्याकरण प्राचीन प्रणाली और पूर्वाचार्यों के अनुसरण पर बहुमान्य साहित्य के आधार पर लिखा गया था। उन्होंने अपनी अपभ्रंश का कहीं भी नामकरण भी नहीं किया है। क्योंकि अपभ्रंश भाषा का विकास तथा उसमें रचनाएँ बहुत दिनों से होती चली आ रही थीं। उस समय तक बड़े-बड़े आख्यानक काव्य, चरित काव्य एवं पुराण काव्य आदि लिखे जा चुके थे। ऐसी परिस्थिति में उन्होंने प्राप्त सामग्री के आधार पर अपने व्याकरण को विस्तृत रूप देने का प्रयत्न किया है। इसीलिये उन्होंने व्याकरण के नियमों को सार्थक बनाने के लिये विभिन्न रचनाओं से, उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। इस कार्य में चण्ड ने यद्यपि कुछ सहायता दी थी तथापि हेमचन्द्र को स्वतः व्याकरण के समग्र नियम बनाने पड़े थे। नियमों को पुष्ट करने के लिये उन्हें विविध साहित्य की छानबीन करनी पड़ी थी। इतना बड़ा परिश्रम उन्हें इसीलिये करना पड़ा था क्योंकि उस समय तक यह भाषा परिनिष्ठित हो चुकी थी, सुसंस्कृतों की हो चली थी। यदि यह भाषा उस समय जनभाषा ही होती तो उस समय उन दोहों को उद्धृत करने की कोई आवश्यकता न होती। कथ्य भाषा के रहने पर जनभाषा से ही उदाहरणों को प्रस्तुत किया जाता। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि जिस अपभ्रंश का साहित्य समस्त आर्यावर्त में फैला हुआ था उस भाषा की रचनाओं में एकरूपता बनाये रखने के लिये विविध प्रकार के साहित्य से दोहे लिये गये। अपभ्रंश की बहुत-सी बोलियाँ थीं। जैसा कि हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती कुछ अलंकार शास्त्रियों ने भी बताया था कि देश भेद तथा प्रान्त भेद से अपभ्रंश की बहुत सी विभाषायें यानी बोलियाँ थी, उन सभी से पृथक् रहकर साहित्यिक, बहुजन मान्य प्रामाणिक अपभ्रंश का ही व्याकरण लिखा अर्थात् उनमें एक रूपता दृष्टिगोचर किया। बोलियों का यथाशक्ति परिहार किया। यद्यपि इस विधान में हेमचन्द्र को सर्वत्र समान सफलता नहीं मिली है। नियम के अपवाद बहुत स्थल पर देखे जाते हैं। उन नियमों
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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