SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 138 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि इसका यह मतलब नहीं कि इस अपभ्रंश पर राजस्थान, गुजरात, पंजाब या पूर्वी कोशल आदि अपभ्रंशों का प्रभाव नहीं पड़ा था। यही नहीं इस अपभ्रंश पर अन्तिम युग की प्राकृत का असर भी देखा जा सकता है। शौरसेनी अपभ्रंश बहुत कुछ माने में पुरानी हिन्दी के समीप है। हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण में उद्धृत बहुत से दोहों से इस बात की पुष्टि हो जाती है। संभवतः इन्हीं सभी कारणों से पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने परवर्ती अपभ्रंश को पुरानी हिन्दी कहकर पुकारा है। इसी बात की पुष्टि डा० सुनीति कुमार चाटुा ने भी की है। उन्होंने राजस्थानी भाषा (पृ० 60) में लिखा है 'यह शौरसेनी अपभ्रंश मानों कि उस जमाने की (अर्थात् सन ई० 800 से 1300 तक की) हिन्दी ही थी. जिसमें कबीर की भाषा में जैसा है वैसा ही शूरसेन की भाषा में भी दिल्ली की भाषा का (और कभी-कभी कोसल और काशी की भाषा का तथा इसके अतिरिक्त राजपूताना और गुजरात की भाषा का भी) पर्याप्त मिश्रण हुआ करता था।' समग्र मध्य प्रदेश, काशी और कोसल के पूर्वी प्रान्त, उत्तर पश्चिम भारत अर्थात् पंजाब तथा गुजरात और राजपूताना के विशाल भूखण्ड में जब एक बार प्रान्तीय बोली शौरसेनी साहित्य की मर्यादा स्थापित हो गयी तब से शौरसेनी साहित्यिक अपभ्रंश का गौरवमय इतिहास आरम्भ हुआ। यह काम 8वीं या 9वीं शताब्दी ई० के लगभग हुआ था। इसका यह गौरवपूर्ण कार्य 4 या 5 सौ शताब्दी ईस्वी तक रहा। इस गौरवपूर्ण कार्य को विकसित करने में भारतीय इतिहास ने बड़ा भारी योगदान दिया। राजपूत युग-गुर्जर शब्द की उत्पत्ति राजा हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद (सं० 648) भारत का राजनीतिक रूप बिखर गया। सूर्यवंशी चन्द्रवंशी क्षत्रिय राजघरानों के साथ कुछ और विदेश से आयी हुई जातियों के एक साथ मिलने से एक नई जाति बनी जिसे राजपूत काल कहकर पुकारा
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy