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________________ अपभ्रंश भाषा I थीं और बोलियों के लिये भी इन्हीं का उल्लेख किया गया है। सचर के विषय में जानकारी नहीं हो पाती । मृच्छकटिक की टीका में पृथ्वीधर ने शकार और शबर का नाम शयर और सचर के लिये किया है । फिर भी सचर शब्द का अर्थ स्पष्ट नहीं होता । शकार बोली का समाहार मागधी के अन्तर्गत कर लिया जाता है। यह बोली शबर और आभीर आदिम जातियों के साथ ही जुटी हुई थीं। प्रसिद्ध आभीर शब्द जो कि गाय चराने वालों के लिये प्रयुक्त होता था साहित्यिक प्राकृत में इसको स्थान प्राप्त हुआ। इनके साथ अन्य लोग जैसे गड़ेरिये, कोचवान, पीलेवान और काष्ठ कला आदि के लोग भी सम्मिलित कर लिये गए थे । इस पर हम अनुमान कर सकते हैं कि भरत ने आभीर आदि शब्द का उल्लेख संभवतः अपभ्रंश बोली के लिए किया हो । भरत के समय में यह भाषा संभवतः निर्माण या विकास की स्थिति में रही हो और दण्डी के समय तक आते-आते या कुछ पहले ही यह प्रौढ़ता को प्राप्त कर चुकी हो तथा अपनी साहित्यिक महत्ता स्थापित कर ली हो। भरत का समय ई० पू० 300 या 400 के लगभग सप्रमाण डा० दास गुप्त ने प्रमाणित किया है। भरत से लेकर दण्डी के समय तक राजनीतिक उत्थान पतन के कारण, बोली भाषा के रूप में परिणत होकर, राजकीय सम्मान प्राप्त कर, संभ्रान्त लोगों की भाषा बनकर साहित्यिक महत्व एवं गरिमा को प्राप्त कर ले इसमें किसी भी प्रकार के आश्चर्य की कोई बात नहीं मानी जा सकती। इस बात का स्पष्टीकरण भरत के नाट्यशास्त्र में प्रयुक्त प्रान्त की विशिष्ट भाषा के प्रयोग से होता है गङ्गासागरमध्ये तु ये देशाः संप्रकीर्तिताः । एकारबहुलां तेषु भाषां तज्ज्ञः प्रयोजयेत् । ।58 । । 93 विन्ध्यसागरमध्ये तु ये देशाः श्रुतिमागताः । नकारबहुलां तेषु भाषां तज्ज्ञः प्रयोजयेत् । 159 1 1 *
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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