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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि के समय या उसके कुछ पूर्व राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति के कारण आभीरों ने समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। नहीं तो दण्डी के साहित्यिक अपभ्रंश के आभीर आदि लोग तथा भरत की विभाषा के शबर, आभीर आदि लोगों का वर्णन वस्तुतः एक ही प्रकार से नहीं होता । अन्तर है तो केवल सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितयों के परिवर्तन की झंझावात का । 92 भरत ने विभाषा के अन्तर्गत जिन लोगों का उल्लेख किया है वे समाज के पिछड़े हुए वर्ग, निम्न वर्ग और आदिम जाति के वर्गों की बोलियों का प्रतिनिधित्व करते थे। भरत के समय वे लोग केवल पश्चिमोत्तर भारत में ही न रहकर समस्त भारत में फैले हुए थे । भरत ने स्वतः उन लोगों के वर्गों के विभाजन की व्याख्या की है साथ ही साथ उनमें से कुछ बोलियों की भी व्याख्या की है अङ्गरकारव्याधानां काष्ठपन्त्रोपजीविनाम् । योज्या शबरभाषा तु किञ्चिद्वानौकसी तथा । । ना० शा० 18/41-42 गाजाश्वाजाविकोष्ट्रादिघोषस्थाननिवासिनाम् । आभीरोक्तिः शाबरी स्यात् द्राविडी द्रविडादिषु । । ना० शा० 18/42-44 शबर शब्द का अर्थ कोयला बनाने वाला, शिकारी और जो काष्ठ कला (ऊड क्राफ्ट) पर जिन्दगी बसर करते थे, इसके अतिरिक्त जंगली लोग जिनके लिए भरत ने 'वनौकसी' शब्द का प्रयोग किया है । 'आभीर' और 'शाबरी' शब्द का प्रयोग चरवाहा (गाय चराने वाला), गड़ेरिया, और कोचवान आदि के लिये हुआ था। इस पर जार्ज ग्रियर्सन ने (जनरल एशियाटिक सोसाइटी1918 पृ० 491) लिखा है कि शबर और आभीर दोनों ट्राइव जातियाँ
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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