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________________ (ix) व्यास ने अवहट्ट पर ही विशेष रूप से बल दिया है तथा छन्दः शास्त्रीय अध्ययन की ओर उनका झुकाव अधिक है। डॉ० श्री तगारे का अंग्रेजी में लिखित अपभ्रंश व्याकरण यद्यपि महत्वपूर्ण है किन्तु उनका ध्यान अपभ्रंश शब्दों के विकासात्मक अध्ययन पर ही टिका हुआ है। डॉ० वीरेन्द्र श्री वास्तव का अपभ्रंश भाषा का अध्ययन इस सम्बन्ध में अवश्य एक प्रशंसनीय कार्य है किन्तु उन्होंने भी मात्र ध्वयात्मक, रूपात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टि से ही मुख्यतया अपभ्रंश भाषा पर विचार प्रस्तुत किया है। इस संदर्भ में सर्वप्रथम स्तुत्य प्रयास डॉ० परममित्र शास्त्री का रहा है जिन्होंने सूत्रशैली और अपभ्रंश व्याकरण नामक पुस्तक में सर्वप्रथम अपभ्रंश विषयक गम्भीर एवं विश्लेषणात्मक कार्य प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से सन् 1967 ई० में सर्वप्रथम प्रकाशित हुयी थी। उन्होंने अपनी पुस्तक में सूत्रशैली और हेमचन्द्र के व्याकरण को दो भागों में समाविष्ट किया है जिसके प्रथम भाग में क्रमशः व्याकरण शास्त्र, संस्कृत के सूत्रबद्ध व्याकरण, पालि का सूत्रबद्ध व्याकरण, प्राकृत का सूत्रबद्ध व्याकरण, प्राकृत वैयाकरण और अपभ्रंश व्याकरण, आचार्य हेमचन्द्र और उनकी कृतियाँ, अपभ्रंश और देशी की समुचित चर्चा की गयी है। पुस्तक के दूसरे भाग में ध्वनि प्रकरण, कारक प्रकरण, क्रिया प्रकरण, कृदन्त प्रकरण और रचनात्मक प्रत्यय आदि पर सम्यक् एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। पुस्तक के परिशिष्ट में धात्वादेश दिये गये हैं। डा० शास्त्री ने अपनी पुस्तक के प्रत्येक अध्यायों में इस बात का यत्न किया है कि विषय-वस्तु का ऐतिहासिक क्रम से विश्लेषणात्मक तत्त्व प्रस्तुत करते हुये सहज एवं सुबोध रूप में उपलब्धियाँ स्पष्ट की जायें। डॉ० शास्त्री की यह कृति हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि उनकी उपर्युक्त पुस्तक का ही कुछ हद तक परिवर्तित, परिमार्जित एवं परिवर्धित रूप कहा जा सकता है। तथापि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पुस्तक में आचार्य हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों पर स्वतन्त्र, नवीन एवं वैज्ञानिक दृष्टि से गवेषणात्मक चिन्तन किया गया है और साथ ही अपभ्रंश भाषा एवं व्याकरण पर विभिन्न दृष्टियों से समुचित प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक समग्र रूप से चौदह अध्यायों में विभाजित
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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