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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि (4) (क) अकारान्त संज्ञा शब्दों के षष्ठी ए० व० में अस, आतो और आतु में बदल जाता है-दूरात-तुरातो, तु, मामतो, ममातुः तुमातो, तुमातुः। (ख) तृ० ए० व० का तत् और इदम् का नेन् और नाए होता है। तेन कृत्-नेन कृत्, पूजितो च तया-पूजितो च नाए। चूलिका पैशाची की प्रमुख विशेषताएँ हेमचन्द्र के कुमारपालचरित में चूलिका पैशाची पायी जाती है। काव्यानुशासन, हम्मीर दर्शन नामक नाटक और षड्भाषा स्त्रोत में भी यह पायी जाती है। इसे सभी वैयाकरणों ने पैशाची मानी है। केवल हेमचन्द्र और लक्ष्मीधर ने चूलिका पैशाची का वर्णन किया है। वर्ग के तृतीय और चतुर्थ का प्रथमा और द्वितीया में परिवर्तन हो जाता है-नगर-नकर, मेघ-मेख, जीमूत-चीमूत, गाढं-काठं । र विकल्प करके ल में बदल जाता है। इस प्रकार प्राकृत वैयाकरणों ने जिन प्राकृत भाषाओं का वर्णन किया है वह लोक भाषा के आधार पर आधारित है। आगे चलकर वह संस्कृत का आदर्श अपना-कर केवल साहित्यिक भाषा हो गई। प्राकृत में संस्कृत की अपेक्षा अधिक परिवर्तन हुआ। व्यंजन ध्वनियाँ समाप्त हो गयीं। धातु रूपों में सरलीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी। अब कारकों के रूपों में भी काफी ढिलाई हो चली थी। सम्प्रदान कारक के रूप समाप्त हो चले थे। कर्ता और कर्म कारक के बहुवचन का रूप एक सा ही चलने लगा। द्वि वचन तो बहुत पहले ही समाप्त हो गया था। लङ, लिट और विविध प्रकार के लुङ् लकार के रूप समाप्त हो चले। क्रिया की जगह कृदन्त का प्रयोग बढ़ चला। आत्मनेपदी धातुओं के प्रयोग बहुत कम बच रहे। इस प्रकार यह भाषा श्लेष से विश्लेषणात्मकता (Analytic) की ओर बढ़ने लगी। इसी से अपभ्रंश ने जन्म लेकर न० भा० आ० भाषाओं का सूत्रपात किया।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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