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________________ तंत्र को सतर्क रखे तो भीतर के अवस्थानों में उत्त्पन्न होने वाली काम-क्रोधादि वृत्तियों को वह रूपान्तरित कर सकता है। ___ इस प्रकार की प्रक्रिया को सावधानी के साथ लम्बे समय तक सक्रिय रखी जाय तो साधक सूक्ष्म परिधि की समीपता में उत्पन्न होने वाले परिवर्तनों का स्वयं स्रष्टा और निर्माता बन कर स्वतंत्रता साध सकता है। प्रबलतम शक्ति संकल्प इस त्रिआयामी साधना में सबसे प्रबलतम शक्ति होती है संकल्प की शक्ति। संकल्प जितना प्राणवान् होगा, साधना उतनी ही सप्राण होगी। इस संकल्प शक्ति का सम्बन्ध स्थूल शरीर के साथ कम किन्तु सूक्ष्म शरीर के साथ अधिक होता है। वह संस्कारात्मक सूक्ष्म शरीर भी जिसमें सूक्ष्म वृत्तियों के भी संस्कार होते हैं, आज से नहीं, अनादि एवं अनन्तकाल से ढलती आ रही चेतना के साथ सम्बन्धित होता है। इस चेतना ने अज्ञानवश इन वृत्तियों को निज भाव रूप में मान रखी है। बस यही भूल इस चेतन सत्ता को अनन्त काल से संत्रस्त बना रही है। चूंकि यह भूल अनन्त काल की है, इस कारण उसका परिमार्जन एकदम कुछ ही क्षणों में या कुछ वर्षों में ही हो जाय इसकी कम संभावना रहती है। इसे सुधारने के लिये तो कई जन्मों तक साधना करनी पड़ती है। जिन महान् चेतनाओं ने अपनी ऐसी विकारी वृत्तियों पर विजय प्राप्त की है उन्होंने भी अपने अनेक जन्मों की साधना के द्वारा वह विजय प्राप्त की है। हमें भले ही ऐसा लगा हो कि उन महापुरुषों ने इसी जन्म में आत्म-साक्षात्कार करके मुक्ति प्राप्त कर ली। किन्तु मुक्ति प्राप्त होती है पूर्व जन्मों की अनेक साधनाओं के बल पर ही। ऐसा अपवादरूप से हो सकता है कि आत्मा की अवस्थिति का परिपाक अत्यन्त त्वरित गति से हो जाय। यह एक अलग बात है। इस प्रकार ऐसा उत्साहपूर्ण संकल्प सदा बना रहना चाहिये कि इस जन्म में नहीं तो, मैं आगामी जन्म में अवश्यमेव अपने लक्ष्य को प्राप्त करके सिद्ध अवस्था में पहुँच जाऊँगा। यदि ऐसा संकल्प प्राणवान् होगा तो साधक इन विकारी वृत्तियों को परास्त करके सर्वकर्म विनिमुक्ति लोकालोक के साक्षात्कर्ता सिद्धस्वरूप को अवश्य ही प्राप्त करके रहेगा। ऐसे दृढ़ संकल्प का संस्कार जब सूक्ष्म शरीर के साथ चेतना में संयुक्त हो जाता है, तब वैसे ही सुसंस्कार जन्म-जन्मान्तर तक अनुगामी बन जाते हैं। इस वजह से उसकी शक्ति आगामी जन्म में भी आध्यात्मिक ऊर्जा को सम्बल प्रदान करती है। वह प्रबल सम्बल एक दिन सूक्ष्मतम शरीर के समस्त विकारों को उखाड़ कर फैंक देता है और परम शुद्धि का द्वार खोल देता है। सद्विचार की शक्ति तीव्रतम संकल्प के साथ इस साधना में एक अन्य शक्ति की भी अपेक्षा रहती है और वह है सद्विचार की शक्ति। यह सद्विचार की शक्ति जब तक संकल्प की संपुष्टि का वातावरण तैयार करती रहती है, तब तक संकल्प शक्ति क्रियाशील बनी रहती है। संपुष्टि का ऐसा वातावरण न हो तो संकल्प निष्क्रिय बन जाता है। यदि सम्पूर्ण जीवन ही विलासपूर्ण वातावरण से विलग हो जाय और अपने आध्यात्मिक संकल्पों का आवर्तन करता रहे तो इन संकल्पों की सहायता से लक्ष्य सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। इसलिये संकल्प-साधना के साथ-साथ सद्विचारों के वायुमंडल का निर्माण २८
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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