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________________ यलशील बनते हैं। स्थूल शरीर के वर्तुल में ऐसे अनेक प्रवेश द्वार हैं जिनमें सर्वाधिक विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार श्वास प्रणाली (प्राणायाम) का है। इस श्वास प्रणाली के वाहन पर यदि साधक एक बार सफलतापूर्वक आरूढ़ हो जाता है तो वह उस वाहन की सारी गतिविधि से भी परिचित हो जाता है। उस वाहन से वह आन्तरिक वाहन का अवलंबन प्राप्त करके विराट आन्तरिक मार्ग पर शक्ति के साथ चल पड़ता है। श्वास समीक्षा ऐसा साधक भीतर में रहने वाले पांच प्रकार के वायु संस्थान तथा उनकी समीपता से प्राणवायु का मूल्यांकन कर लेता है। इसी मूल्यांकन की सहायता से वह प्राणशक्ति की पहिचान कर सकता है। प्राणशक्ति के समीप पहुँच जाने पर सूक्ष्म परिधि के सान्निध्य में रहने वाली बहुरंगी शक्तियों को पहिचान पाने का सामर्थ्य उसमें जाग उठता है। उनकी पहिचान के बाद साधक का आगे का मार्ग आसान हो जाता है। ___ श्वास की अधिकांश गतिविधि नासिका के माध्यम से संचालित होती है। इसे विज्ञान के क्षेत्र में ऑक्सीजन (प्राणवायु) कहते हैं। यह ऑक्सीजन वनस्पति आदि तत्त्वों में से बहुलता से प्राप्त होती है। यह ऑक्सीजन जब फेफड़ों में पहुँचती है तो वहाँ रक्त-शुद्धि का कार्य करती है। यह शरीर में रहे हुए अशुद्ध तत्त्वों को बाहर निकाल देती है। शरीर विज्ञान के वैज्ञानिक अपने ज्ञान की सीमा इस ऑक्सीजन तक ही सामान्य रूप से मानते हैं। परन्तु योग पद्धति आदि की दृष्टि से इस विषय का चिन्तन बहुत गहराई तक पहुंचा हुआ है। श्वास द्वारा संगहीत प्राणवाय रक्तशद्धि के साथ-साथ रक्त संचरण में भी समाविष्ट हो जाती है जिसके कारण प्राणवायु का फैलाव शरीर के छोटे से छोटे याने सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवयवों से लेकर स्थूल से स्थूल अवयवों तक हो जाता है। इस रक्त संचार में प्राणवायु का जितनी अधिक मात्रा में प्रभाव पड़ेगा, उतने ही प्रभाव से प्राणवायु शरीर के आन्तरिक संस्थानों में मुख्य संचालन की वाहिका बन जायेगी। इस प्राणवायु के उपरांत इसी अवस्थान के अन्तर्गत समान वायु भी मिल जाती है। यह समान वायु समान रूप से यथायोग्य यथा-स्थान पर शरीर की आवश्यकताओं की सम्पूर्ति में सहायक बनती है। आन्तरिक संस्थानों की हलनचलन और प्रकम्पन आदि अवस्थाओं के फलस्वरूप अन्य वायुओं का निर्माण भी हो जाता है। इन्हीं वायुओं में से जिस वायु का प्रवाह ऊर्ध्व दिशा में जाता है, उसे 'ऊर्ध्ववायु' के नाम से पहिचानते हैं। दूसरी कई वायु शरीर के अधोभाग की तरफ बहती हैं, उन्हें 'अधोवायु' कहते हैं। ऊर्ध्व और अधोवायु की दिशाओं से अलग विभिन्न दिशाओं में भी शरीर के अवयवों से उत्पन्न होने वाली वायु को 'व्यानवायु' के नाम से पुकारते हैं। इस प्रकार योग पद्धति के अनुसार पांच प्रकार की वायु शरीर के आन्तरिक अवयवों में व्याप्त होकर फैली हुई रहती हैं। शरीर में जहाँ कही वेदना का अनुभव होता है, उसका अधिकांश भाग वायु वेग के अवरुद्ध हो जाने के कारण ही होता है। इस अवरोध का मुख्य कारण व्यक्ति के बाह्य जीवन में व्यवस्थित क्रिया-कलाप का अभाव होता है। इस वायु संस्थान तथा उसके विभिन्न विभागों को व्यवस्थित रीति से संचालित करने के ज्ञान का अभाव भी इसका कारण है। सही ज्ञान नहीं होने से वायुओं का व्यवस्था-तंत्र बिगड़ जाता है। इतना ही नहीं, कई बार तो व्यवस्था-तंत्र ऐसा अस्त-व्यस्त २४
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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