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________________ आध्यात्मिक धरातल पर साधना कर रहे साधक के लिए सच्चिदानन्द के साक्षात्कार रूपी लक्ष्यगत आस्था तो समुचित है किन्तु इस लक्ष्य की अभीष्ट सिद्धि हेतु किन-किन अवस्थाओं के साथ किन-किन मार्गों का अनुसरण करके किस प्रकार के तत्त्वावलोकन द्वारा किन-किन शक्तियों का निर्धारण करने से अन्तरात्मा में आछन्न निधि अभिव्यक्त की जा सकेगी—उसका पूर्व ज्ञान अनिवार्य होता है। इस ज्ञान के अभाव में हजारों या लाखों वर्ष तक तो क्या अनन्तान्त काल तक संसार का परिभ्रमण करते रहने पर भी लक्ष्य की प्राप्ति असंभव ही बनी रहेगी। पुरुषार्थ भी भले किया जाता रहे किन्तु वास्तविक गंतव्य स्थान तक पहुँचना नहीं हो सकेगा। यह तथ्ययुक्त वस्तुस्वरूप का सत्य कथन वीतराग देवों ने किया है। परम लक्ष्य तक पहुँचने के लिए साधक को लक्ष्य के आन्तरिक आयामों, अवस्थाओं और उनसे सम्बन्धित तंत्रों आदि का पूर्वावलोकन कर लेना चाहिये। यह अवलोकन भी समीक्षण ध्यान की धुरी पर ही संभव होगा। यद्यपि इस वर्तमान युग में शरीर-चिकित्सा-शास्त्रियों ने शरीर के विभिन्न अंगोपांगों के बारे में काफी नई जानकारियाँ हासिल की हैं, फिर भी शरीर में निवास करने वाली आत्मा के सम्बन्ध में कुछ भी जान पाना तो दूर अभी तक वे शरीर-तंत्र की अति सूक्ष्म प्रक्रियाओं को भी नहीं पहचान पाये हैं। आत्मा के सम्बन्ध में वे कुछ भी नहीं जान पाये हैं, यह तो ठीक किन्तु वे आत्म-ज्ञान के प्रति आवश्यक आस्था भी नहीं बना पाये हैं। अतः उनकी शरीर सम्बन्धी जानकारियाँ भी अपूर्ण ही कहलायेंगी, क्योंकि शरीर-तंत्र की सम्यक् जानकारी के साथ ही आत्मतंत्र के ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। उनकी इस आस्था की अभावस्थिति के पीछे कई कारण हैं किन्तु मुख्य कारण है अर्थ-दृष्टि की प्रधानता। आज का मानव अर्थ-दृष्टि को सर्वोपरि मानता है तथा अर्थ की उपलब्धि के लिये अन्यान्य साधनों के साथ शरीर के स्थूल विज्ञान को मानकर ही सन्तोष कर लेता है। येन-केन-प्रकारेण मेडिकल परीक्षाओं को उत्तीर्ण करके ही अपने शरीर सम्बन्धी स्थूल ज्ञान को लेकर वह अर्थोपार्जन में तन्मय हो जाता है। इस कारण शरीर तंत्र के सूक्ष्मतम अवयवों की आन्तरिक परिधि में क्या-क्या रहस्य समाये हुए हैं इस दिशा में उसकी चिन्तन शक्ति आगे नहीं बढ़ पाती है। वह इस दिशा में जिज्ञासु भी नहीं बनता है। परन्तु जो शरीर विज्ञान के ज्ञाता स्थूल विज्ञान तक ही सीमित न रह कर इस तंत्र की सूक्ष्मता में प्रवेश करते हैं वे उसकी व्यापक शोध में लगे हुए हैं। उन्होंने किन्हीं नवीन रहस्यों का ज्ञान भी किया है। कई वैज्ञानिक मनोविज्ञान को शरीर विज्ञान से जोड़कर कई प्रकार की ग्रंथियों की खोज भी कर पाये हैं, जो सूक्ष्म तंत्र की जानकारी लेने के काम में बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। ये ग्रंथियाँ प्रणालीयुक्त रसवाहिनी भी हैं और प्रणालीविहीन अन्तःस्रावों को स्थूल शरीर में पहुँचाने वाली भी हैं। यह हर्ष का विषय है कि इन नवीन शोधों से ही वे वैज्ञानिक सन्तुष्ट नहीं हो गये हैं किन्तु अपने अनुसंधानों को आगे बढ़ा रहे हैं। आध्यात्मिक विज्ञान के विज्ञाता साधक इस क्षेत्र में निश्चय ही आगे बढ़े हुए हैं। इन साधकों में कई तो अनुकरणशील प्रवृत्ति के ही होते हैं और विरले साधक अपनी अनुकरणशीलता का नूतन संशोधनों के साथ अपना सामंजस्य बिठाते हैं। वस्तुतः आध्यात्मिक कोष की उपलब्धि के इच्छुक साधक तो अपना स्थिर प्राप्य विषय सच्चिदानन्द को ही मानते हैं। यह सच्चिदानन्द स्वरूप जिन आवरणों के पीछे छुपा हुआ है, उन आवरणों के अन्दर प्रवेश कराने वाले द्वारों की खोज में वे २३
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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