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________________ आप्त पुरुषों ने विभिन्न उपमाओं से मनुष्यों के वर्गीकरण इस रूप में किये हैं कि फूल की तरह मनुष्य चार प्रकार के होते हैं— (१) सुन्दर किन्तु गंधहीन । मनुष्य के संदर्भ में सुन्दरता भौतिक सम्पत्ति को मानी है तथा आध्यात्मिक (नैतिक) उन्नति की उपमा सुगन्ध से दी है । तो पहले वर्ग के मनुष्य ऐसे होते हैं जो भौतिकता से सम्पन्न किन्तु उसी में लीन होते हैं। वे आध्यात्मिक या नैतिक चेतना से शून्य से ही बने रहते हैं। (२) गंधयुक्त किन्तु सौन्दर्यहीन । दूसरे वर्ग के मनुष्य आध्यात्मिकता में चिन्तनशील तथा नैतिकता के आचरण वाले होते हैं किन्तु भौतिक सम्पत्ति से रहित होते हैं किन्तु उसके लिये वे खेद मन नहीं होते, आध्यात्मिक आल्हाद से उल्लासित बने रहते हैं । (३) सुन्दर भी, सुगंधित भी । तीसरे वर्ग के मनुष्यों के पास भौतिक सम्पन्नता होती है तो उनकी ज्ञान चेतना आध्यात्मिकता से भी सम्पन्न होती है। वे महान् ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति होते हुए भी उसमें आसक्त नहीं बनते हैं। उनके लिये उनकी सम्पत्ति ही लोष्ठवत् होती है। (४) न सुन्दर, न गंधयुक्त। चौथे वर्ग के मनुष्य भौतिक सम्पत्ति से भी हीन होते हैं तो आध्यात्मिक चेतना से भी शून्य । दोनों क्षेत्रों का दारिद्र्य उन्हें घेरे रहता है। मनुष्य की विभिन्न वृत्तियों के विषय में भी ज्ञानप्रद वर्गीकरण बताये गये हैं । उनमें से कुछ इस प्रकार है : (१) घड़ों से मनुष्य की तुलना की गई है। घड़ा मनुष्य के हृदय को माना गया है तो ढक्कन उस की वाणी को । विचार और वाणी की एकरूपता या विभेदता की दृष्टि से यह उपमा है । (अ) मधु का घड़ा और मधु का ढक्कन याने विचार और वाणी दोनों श्रेष्ठ। (ब) मधु का घड़ा और विष का ढक्कन याने विचार श्रेष्ठ किन्तु वाणी कटुताभरी । (स) विष का घड़ा और मधु का ढक्कन याने विचार कलुषित और निकृष्ट, किन्तु उनका वाणी में मायाचार से भरा मीठा प्रकटीकरण । तथा (द) विष का घड़ा और विष का ढक्कन याने विचार और वाणी एक-सी निकृष्ट । (२) कुछ व्यक्ति सेवा आदि का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं किन्तु उसका अभिमान नहीं करते। कुछ अभिमान करते हैं, किन्तु कार्य नहीं करते। कुछ कार्य भी करते हैं और अभिमान भी करते हैं। कुछ न कार्य करते हैं, न अभिमान करते हैं । . (३) कुछ साधक सिंह वृत्ति से साधना पथ पर आते हैं और सिंह वृत्ति से ही रहते हैं । कुछ सिंह वृत्ति से आते हैं किन्तु बाद में शृंगाल वृत्ति अपना लेते हैं। कुछ शृंगाल वृत्ति से आते हैं और बाद में सिंह वृत्ति अपना लेते हैं। कुछ शृंगाल वृत्ति लिये आते हैं और शृंगाल वृत्ति से ही चलते रहते हैं । (४) कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो सिर्फ अपना ही भला चाहते हैं, दूसरों का नहीं। कुछ उदार व्यक्ति अपना भला चाहे बिना भी दूसरों का भला करते हैं। कुछ अपना भला भी करते हैं और दूसरों का भी । कुछ न अपना भला करते हैं, न दूसरों का । (५) कुछ व्यक्ति समुद्र तैरने जैसा महान् संकल्प करते हैं और समुद्र तैरने जैसा महान् कार्य भी करते हैं। कुछ व्यक्ति समुद्र तैरने जैसा महान् संकल्प लेते हैं किन्तु गोष्पद (गाय के खुर ३०२
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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