SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे कहने का आशय यह है कि मानव निर्माण के महत् कार्य में इस सामूहिक शक्ति का भी लाभ लिया जाना चाहिये और धर्म नीति एवं एन्य नीतियों के प्रयोग से ऐसा वातावरण रचा जाना चाहिये जो मानवता को उत्प्रेरित करे। धर्म नीति का प्रयोग जहां अधिकांशतः व्यक्तिपरक होता है, वहां विभिन्न सामाजिक शक्तियों का प्रयोग समूह-परक । यह समूह अपने-अपने क्षेत्र के अनुसार विशाल, विशालतर या विशालतम हो सकता है। अतः दोनों प्रकार की नीतियों का प्रयोग साथ-साथ किया जा सकता है। धर्मनीति व्यक्ति को सद्ज्ञानाचरण की प्रेरणा से शक्तिशाली बनायगी तो सामाजिक नीतियों के द्वारा समाज के वातावरण को इस रूप में अनुकूल बनाया जा सकेगा कि सदाशयी व्यक्तियों को मानवता-निर्माण के कार्य में सरलता हो सके और स्वयं वे भी निरबाध रूप से आगे बढ़ सके । इस उभय पक्षी प्रयोग की महत्ता को इस प्रकार समझें कि एक व्यक्ति को चलना है । उसके सामने जहां चलना है उस भूमि की दो प्रकार की दशा हो सकती है। एक तो यह हो कि कोई मार्ग बना हुआ नहीं है—भूमि कंटीली, पथरीली और ऊबड़-खाबड़, जहां पथिक को ही अपना मार्ग खोजना है और उस बीहड़ भूमि पर आगे से आगे चलना है। उस चलने में पैरों से कितना खून बहेगा, अंग अंग में किस तरह दर्द होगा और कितना पसीना बहाकर वह आगे बढ़ सकेगाइसका उसे कोई अनुमान नहीं । इस तथ्य का भी वह अनुमान नहीं लगा सकेगा कि वह ऐसे भयावह धरातल पर कितनी दूरी तक आगे बढ़ सकेगा। दूसरी यह दशा हो सकती है कि भूमि चाहे जैसी है लेकिन उस पर पक्की सड़क बनी हुई है, संकेत चिह्न लगे हुए हैं कि यह सड़क कहां तक जायगी। और मार्ग में किसी प्रकार का भय भी नहीं है। अब कल्पना करें कि धरातल की दृष्टि से पथिक की यात्रा पर कैसा प्रभाव पड़ेगा ? समझ लें कि पथिक सुदृढ़ शारीरिक शक्ति एवं अटूट इच्छा शक्ति का धनी है, फिर भी हो सकता है कि पहली दशा वाले धरातल पर चलते-चलते कहीं न कहीं विकट स्थिति में उसका साहस छूट जाय या शरीर ही टूट जाय । यह भी मान लें कि वह उन सारी परिस्थितियों को जीतता हुआ ही आगे बढ़ जायगा लेकिन क्या सभी सामान्य पथिक ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सहज रूप से सामना कर सकेंगे ? इक्की टुक्की मीनारें इस वातावरण में खड़ी हो सकती हैं लेकिन अधिकांश भाग तो गड्ढों वाला ही रह जायगा । अब दूसरी दशा वाले धरातल की कल्पना करें। सड़क है, संकेत है और भय नहीं है तो सामान्य शक्ति वाले पथिक भी निश्चिंत होकर उस पर चल सकते हैं और निश्चित स्थान पर बेखटके पहुंच सकते हैं। तो सुगम धरातल के निर्माण का कार्य सामाजिक नीतियां करती है । धर्मनीति व्यक्ति में शक्ति का संचार करती है तो विविध सामाजिक नीतियाँ उसकी प्रगति के लिये श्रेष्ठ धरातल का निर्माण करती हैं। इस रूप में सामाजिक नीतियों के प्रयोग को समझें। राजनीति में मानव को प्रमुखता देने वाली लोकतंत्रीय पद्धति का विकास हुआ है तो प्रत्येक नागरिक को मताधिकार मिला है। यह मताधिकार मागरिक की चेतना को जगाता है कि वह शासन चलाने में स्वयं भागीदार है और उसके लिये अपनी मनमर्जी के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकता है। यह चेतना स्वयं उसे अपने महत्त्व का भान कराती है। इससे उसे अधिकार बोध भी होता है तो अपने कर्तव्यों का बोध भी । इसी प्रकार अर्थ नीति में समाजवाद का विकास प्रत्येक नागरिक को अर्जन के समान अवसर प्रदान करना २८४
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy