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________________ (कल्याण) को प्राप्त कराता है तो सर्व कल्याण ही सुन्दरता का प्रतिरूप होता है। सत्य ही आत्मा को कल्याणकारी स्वरूप प्रदान करके उसे भव्य सौन्दर्य से विभूषित बनाता है। अतः सत्य की उपलब्धि की शोध ही मेरा परम साध्य है और जब मेरे मन, वचन तथा कर्म में सत्य रम जायगा तब मेरे जीवन में सत्य का क्या, ईश्वरत्व का ही स्वरूप निखरने लगेगा। सत्य तेजोमय भी होता है तो अमिट शान्ति का प्रदाता भी। मैं हमेशा सत्य को ही हृदय में स्थान दूं, सत्य ही बोलूं और अपने प्रत्येक आचरण को सत्यमय ही बनाऊं यह मेरा जीवन मंत्र होना चाहिये। सत्य बोलूं लेकिन सावद्य नहीं बोलूं अर्थात् सत्य बोलूं और प्रियकारी सत्य बोलूं, अप्रियकारी नहीं। ___ मैं जानता हूं कि सत्य-भाषण से आत्मा की ओजस्विता बढ़ती है क्योंकि सत्य और निर्भीकता सदा जुड़े हुए रहते हैं। सत्य और भय का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं होता है। चारों ओर से दुःखों से घिरे हुए रहने पर भी एक सत्यवादी कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि वह सत्य के सहयोग से निर्भय होता है। वह अपने उद्देश्य से कभी डिगता नही है। इसलिये मैं अवधारणा लेता हूं कि मैं अपने लिये भी झूठ नहीं बोलूं, दूसरों से भी झूठ नहीं बुलवाऊं तथा झूठ का कभी भी अनुमोदन भी नहीं करूं। सत्य को जानते हुए मैं कभी अपनी आत्म-प्रशंसा भी नहीं करूं तो पर निन्दा के पाप में भी नहीं पडूं। मैं न तो किसी स्वार्थ के बहकावे में आकर झूठ बोलूं और न कभी क्रोध के आक्रोश में भी झूठ बोलूं। मैं जानता हूं कि एक झूठ के कारण हजारों दोष मुझे घेर लेंगे। सत्य मुझे गंभीर बनायगा, शान्त और प्रशान्त करेगा तो मेरी आस्था को अडिग रखेगा। मैं यह भी जानता हूं कि सत्य असह्य होता है, फिर भी सत्य को मैं एक पल के लिये भी अपने से दूर नहीं करूंगा। सत्य और शुद्ध सत्य का मैं पुजारी बनूंगा। सत्य को मैं इस दुर्भावना से तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं करूंगा कि वह ऊपर से तो सत्य दिखाई दे परन्तु भीतर से मैं उसकी आड़ में अपने स्वार्थों को साधूं। सत्य को मैं किसी पर प्रहार का साधन नहीं बनाऊंगा याने कि सत्य होते हुए भी मैं न किसी का मर्म उघाडूंगा और न मर्मभेदक वचन कहूंगा। सत्य को मैं मर्यादा-पालन का सबल सहायक बनाऊंगा। सत्य को मैं मूर्खता का चिह्न भी नहीं बनाऊंगा—एक एक शब्द को तोलकर—उसके परिणाम को आंककर ही बोलूंगा। यथायोग्य स्थान पर यथायोग्य रीति से इस प्रकार बोलूंगा कि मेरे भाषा के सुसंस्कार सबको दिखाई दें और उनका सब पर सुप्रभाव पड़े। मेरे वचन सत्य होते हुए भी न तो हिंसक रूप लें और न मैं अप्रियकारी सत्य बोलूं । कपटपूर्वक सत्य बोलने को भी मैं झूठ का ही रूप मानूं। सत्य भाषी के साथ मैं मित भाषी भी बनूं। जिससे हित साधन होता हो, वही प्रखर सत्य होता है अतः ऐसे सत्य का दमन मैं अपना सर्वस्व न्यौछावर करके भी न छोडूं। मेरा सत्य पूर्वापर-अविरुद्ध हो तथा मन, वाणी एवं कर्म के तीनों योगों से अकुटिल हो। मैं स्पष्ट सत्य का पक्षधर रहूंगा। मैं असत्य पक्ष का कभी साथ नहीं दूंगा और सत्य का अन्वेषण निरन्तर करता रहूंगा। मैं सत्य वचन का न तो कभी स्वयं अपमान करूंगा और न दूसरों से उसका अपमान सहूंगा। __ मैं जीवन भर सत्यान्वेषी बना रहूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि सत्यान्वेषण ही विचार समन्वय का प्रतीक होता है। मैं कहता हूं वहीं सत्य है और जो दूसरे कहते हैं वह सर्वथा असत्य है छद्मस्थ के ऐसे हठाग्रह से ही मिथ्या का जन्म होता है। जहाँ भी मैं एकान्तवाद ले आया वहां सत्य असत्यमय बन जायगा। इस संसार में जितने मस्तिष्क होते हैं, उतने ही भांति-भांति के विचार होते १४६
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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