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________________ सुधर्म की सही पहिचान हो गई। इस कारण मेरे सामने आत्म विकास का महान् क्षेत्र दृष्टिगोचर होने लगा। इस दशा में मुझे अनुभव हुआ कि मैं अपनी श्रद्धा को सुदृढ़ बनाऊं तथा प्राप्त सम्यक् ज्ञान के प्रकाश में अपने समग्र आचरण को सम्यक् बनाता चलूं। इस प्रक्रिया की सफलता के लिये मैं अपने लिये आत्म-नियंत्रण का धरातल तैयार करना आवश्यक समझता हूँ। यह आत्म-नियंत्रण क्या है तथा कैसे बनेगा इसे मैं समझ लूं। आत्म-नियंत्रण का अर्थ है अपने आपको काबू में रखना। मैं सोचता हूँ कि यह 'आप' कौन है और इसको काबू में कौन रखेगा? तब मुझे मेरे 'मैं' की अनुभूति होती है और जिसको जिसकी यह अनुभूति होती है—दोनों मेरा 'मैं' ही होता है। इससे स्पष्ट होता है कि 'मैं' ही 'मैं' को नियंत्रण में रखेगा अर्थात् सम्यक्त्वधारी और सजग आत्मा ही अपने आप को नियंत्रण में रखेगी तथा यही आत्म-नियंत्रण का अनुभाव है। अब यह स्थिति और समस्या मेरे सामने आती है कि मैं आत्म-नियंत्रण कैसे रखू ? जैसे कोई सत्ता के किसी पद पर बैठा हुआ हो वह हर समय अपनी सत्ता का ध्यान रखता है कि उसके प्रत्येक कार्य में उसकी सत्ता झलकती हो तो उसके सभी अधीनस्थ उसकी सत्ता का मान और पालन करते हों। यह ध्यान वह एक पल के लिये भी नहीं भूलता है। यदि कोई अपनी बाहरी सत्ता के शासन के प्रति भी इतना जागरूक रह सकता है तो एक बार सम्यक्त्व का प्रकाश पाकर भला वह अपनी भीतरी सत्ता का उससे भी अधिक ध्यान रखना क्यों नहीं सीख जायगा? __ मैं जब अपनी भीतरी सत्ता का ध्यान करता हूं तो भीतरी शासन का नक्शा मेरे ज्ञानचक्षुओं के समक्ष खिंच जाता है। 'मैं' शासक हूं और मेरा शासन है अपने आप के ऊपर तथा अपनी इन्द्रियों और अपने मन के ऊपर। यह शासन मुझे इस तरह चलाना है कि मेरा बाहरी जीवन भीतर में उपजे प्रकाश को पकड़े और बाहर के क्रिया-कलाप शुद्धता का स्वरूप ग्रहण करें। प्रतिक्षण मेरी सावधानी रहे सबसे पहले मेरे अपने में लगने वाले विषय-कषाय के झोंके, राग-द्वेष के थपेड़े और प्रमाद के हिंडोले कहीं मुझे मोहाविष्ट बनाकर बेभान न करदे, क्योंकि मैं स्वयं बेभान हो गया तो मेरी नियंत्रण की डोर भी ढीली पड़ जायगी। फिर मन और इन्द्रियों के बहकने को कौन रोकेगा तथा वे बहकते रहे तो मेरा भान वापस लौटना कठिन हो जायगा। . इस कारण मैं आत्म-नियंत्रण को सर्वाधिक महत्त्व देना चाहता हूं। मेरे 'मैं' को मैं नियंत्रण में रख लेता हूं तो फिर मेरा मन और मेरी इन्द्रियाँ अनुशासन नहीं तोड़ सकेगी। मेरे नियंत्रण से इनका नियंत्रण होगा तो वह संयुक्त नियंत्रण मेरे सम्पूर्ण आत्मा स्वरूप की सांसारिकता के विकारों की कालिख से बराबर रक्षा करता रहेगा। आत्मालोचना का क्रम मैं सोचता हूं कि आत्म-नियंत्रण एक अंकुश का काम करेगा तो आत्मालोचना निर्मल जल का। एक हाथी को अंकुश से नियंत्रित किया जाता है। सामान्यतया यह नियंत्रण चलता है। किन्तु कभी ऐसा भी हो जाता है कि महावत के नियंत्रण के बावजूद मस्ती में वह धूल अपने शरीर पर उछाल कर उसे मैला बना देता है। तब महावत साफ पानी से उसके शरीर को धोकर साफ करता है। इसी प्रकार मैं अपने मन, वचन एवं कर्म पर अपना नियंत्रण स्थापित करता हूं किन्तु सांसारिक ११७
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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