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________________ ( ३४ ) अथात्-अन्न से निश्चित रूप से प्रजाओं की उत्पत्ति होती है। जो कोई पृथिवी को आश्रय करके रहती हैं, और वे अन्न से ही जीती हैं । अन्त में इसी को प्राप्त होती हैं । अन्न ही प्राणियों के लिये सब से बड़ी चीज है। इसी कारण वह सर्वोषध कहलाता है। अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न प्राणी अन्न से जीते हैं। प्राणियों द्वारा खाया जाता है, अथवा प्राणी उसे खाते हैं अतः वह अन्न कहलाता है। (२) “पर्जन्ये तृप्यति विद्युत्तृप्यति विद्य ति तृप्यन्त्यां, यत्किचिद् यद्यश्च पर्जन्यश्चा धितिष्ठतस्तृप्यति तस्यानुतृप्ति तृप्यति प्रजया पशुभिरन्नाद्यन तेजसा ब्रह्मवर्चसेनेति', "छान्दोग्योप निषद्” पृ०५८ अर्थात्-मेघ से बिजली तृप्त होती है, विजली के तृप्त होने पर वे सब कुछ तृप्त हों, उनके तृप्ति होने पर वह तृप्त हो, जिस पर धु और मेघ रहते हैं, उसकी तृप्ति के अनन्तर, प्रजा से पशुओं से अन्नादि तेज से और ब्रह्मवर्चस से (पुरुष) तृप्त होता है। (३)-"यत्सप्तान्नानि मेधया तपसा ऽजनयत्पितेति मेधया हि तपसाऽजनयत् पितैकमस्य साधारणमितीदमेवास्य तत्साधारण मन्नं यदिदमद्येत स य एतदुपास्ते न स पाप्मनो व्यावर्तते मिश्राहै तद्वै देवानभाजयदिति हुतं च प्रहुतं च तस्मात् देवेभ्यो जुह्वति च प्रजुह्वत्यथो आहुदर्शपूर्णमासाविति । तस्मान्नेष्टियाजकः स्वाहा स्यात् पशुभ्यः एकं प्रायच्छदिति तत्पयः पयोह्या मनुष्याश्च पशवश्चोपजीवन्ति तस्मात् कुमारं जातं घृतं वै वाने
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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